कहानी:गुरु गोविंद सिंह जी को घेरकर उनके शिष्य बैठे हुए थे और बातचीत चल रही थी। सभी अपनी-अपनी साधना की पद्धति बता रहे थे। कोई कहता था कि मैं तो केवल सेवा का काम करता हूं, कोई कर्म को ही पूजा मानता था।
अधिकतर लोग कह रहे थे, 'गुरु जी, आप कहते हैं कि जाप करो, हम करते हैं, लेकिन हमने देखा है कि जाप में मन नहीं लगता है और हम जो जाप करते हैं, उसका कोई लाभ नहीं मिलता है तो क्या फायदा ऐसा जाप करने से?'
मुस्कान के साथ गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा, 'चलो एक प्रयोग करते हैं।'
गुरु गोविंद सिंह जी ने एक बड़े बर्तन में शराब मंगवाई। सभी हैरान थे। शराब क्यों बुलवाई जा रही है, वह भी इनके द्वारा? गुरु जी बोले, 'एक काम करो, इसमें से एक-एक घूंट सभी पिएं, लेकिन इसे अंदर नहीं उतारना है। सिर्फ कुल्ला करना है। इस बर्तन को खाली कर दो।'
सभी ने उतनी ही शराब ली, जिससे कुल्ला किया जा सकता है। गुरु जी ने कहा, 'अब थूक दो।' सभी ने शराब थूक दी। फिर गुरु जी ने पूछा, 'शराब का बर्तन खाली हो गया?' सभी ने कहा, 'हां खाली हो गया।'
गुरु जी ने फिर पूछा, 'क्या आप लोगों को नशा चढ़ा?'
ये सवाल पूछने पर सभी बोले, 'नशा कैसे चढ़ता? आपने तो कहा था कि भीतर नहीं उतारना है, सिर्फ कुल्ला करना है। इसलिए हमने कुल्ला करके थूक दिया। इसके बाद पानी से भी मुंह धो लिया तो नशा कैसे चढ़ सकता है।'
गुरु गोविंद सिंह जी बोले, 'सही बात है, जब मदिरा भीतर गई ही नहीं तो नशा चढ़ने का सवाल ही नहीं है। जब जाप भीतर नहीं गया। जिस जाप को तुम कर रहे हो, वह भीतर उतरा ही नहीं तो नाम का नशा कैसे चढ़ेगा? इसलिए पूजा-पाठ को दिल में उतारो, तब दुनिया में उसका असर दिखेगा।'
सीख
हमें पूजा-पाठ, जाप आदत की तरह नहीं करना चाहिए, ये काम करना है, सिर्फ इसलिए न करें। पूजन कर्म पूरे मन से करना चाहिए, तभी लाभ मिल सकता है।
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