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युवा महिला-पुरुष एकांत में हों, तो भी अपनी मर्यादा न छोड़ें

कहानी - राजा दुष्यंत से जुड़ा किस्सा है। वे पुरु वंश का विस्तार करने वाले और बड़े पराक्रमी राजा थे और उनके राज्य में सब कुछ ठीक चल रहा था। एक बार वे अपनी सेना के साथ शिकार करने जंगल में गए।

दुष्यंत बहुत घने जंगल में चले गए थे। वे शिकार से लौट रहे थे तो उनकी नजर एक ऐसे क्षेत्र पर पड़ी जो नंदनवन की तरह बहुत ही सुंदर था। वे उस वन से बड़े आकर्षित हो गए और उस क्षेत्र में चले गए।

जंगल में एक के बाद एक हिसंक पशु आ रहे थे, वे सभी को मारते जा रहे थे और आगे बढ़ रहे थे। जब एक विचित्र हिंसक जानवर राजा के सामने से गुजरा तो राजा ने अपना घोड़ा उसके पीछे दौड़ा दिया। कुछ देर बाद सैनिक पीछे छूट गए और राजा जंगल में अकेले हो गए थे।

दुष्यंत एक ऐसे इलाके में पहुंच गए, जहां एक बड़ा मैदान था, वहां पेड़ नहीं थे, लेकिन एक सुंदर आश्रम था। वह आश्रम ऋषि कर्ण्व का था। वहां एक सुंदर कन्या राजा को दिखाई दी। कन्या ने बताया कि वह ऋषि कर्ण्व की पुत्री शकुंतला है।

राजा पहली ही नजर में शकुंतला पर मोहित हो गए थे। दुष्यंत ने कहा, 'इस एकांत में आपको देखकर मेरा मन मोहित हो रहा है। मैं क्षत्रिय हूं, मेरा मन मेरे नियंत्रण में रहता है। पराई स्त्रियों की ओर मेरा मन कभी आकर्षित नहीं होता है, लेकिन आज मेरा मन आपकी ओर आकर्षित है, लेकिन मेरा मन नियंत्रित है। मैं आपसे एक निवदेन करता हूं कि मैं एक राजा हूं और आप मेरी रानी बनें।'

राजा की मर्यादा से शकुंतला प्रभावित हुई और उस समय उनका गंधर्व विवाह हुआ।

सीख - ये घटना हमें एक सीख दे रही है कि एकांत में महिला-पुरुष का मन भटक सकता है। दुष्यंत की बात हर युवा को समझनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि मेरा मन मोहित है, लेकिन नियंत्रित है, संयमित है। युवा अवस्था में मन को भटकने न दें, वरना शरीर का आकर्षण पाप करवा सकता है। जब भी महिला-पुरुष एकांत में हों तो अपनी मर्यादा न छोड़ें और सतर्क रहें।

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