यदि आपने किसी कॉलोनी में प्लॉट खरीदा है तो अब मकान बनाने के लिए कॉलोनी में विकास कार्य पूरे होने का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। यानी बिल्डर और कॉलोनाइजर की लेटलतीफी का खामियाजा प्लॉटधारक को नहीं भुगतना पड़ेगा। वे कॉलोनी की विकास अनुमति के आधार पर ही भवन निर्माण की अनुमति ले सकेंगे।
नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने मप्र नगर पालिक निगम अधिनियम 1956 और 1961 में संशोधन किया है। नए नियमों में कॉलोनाइजर विकास अनुमति मिलने के पांच साल में पूरा विकास करेगा। उसे एक साल की टाइम-लिमिट और मिल सकेगी।
हालांकि, इस बढ़ी हुई अवधि के लिए उसे 20 प्रतिशत अतिरिक्त विकास शुल्क देना हाेगा। विकास में उसके द्वारा की जा रही देरी का प्लॉटधारकों के हितों पर कोई असर नहीं होगा। बड़ा सवाल यह है कि यदि कॉलोनाइजर प्लॉट काटकर भाग गया तो क्या होगा? इस मामले में कलेक्टर मनीष सिंह का कहना है कि उसके बंधक प्लॉट तभी छूटेंगे, जब वह विकास पूरा करेगा। यदि वह नहीं कर पाता है तो बंधक प्लॉट बेचकर अनुमति देने वाली एजेंसी विकास करेगी। उसकी बैंक गारंटी जब्त कर ली जाएगी।
150 कॉलोनियों में विकास कार्य अधूरे, IDA भी शामिल
शहर के आसपास 150 से ज्यादा कॉलोनियों में विकास कार्य पूरे नहीं हुए हैं। इनमें आईडीएम की स्कीम 151, 166, 169 ए, 169-बी, 176 भी शामिल है। नियमों में बदलाव के बाद इन सभी में अब बिल्डिंग परमिशन निगम और पंचायतों से जारी हो सकेगी।
अभी पूर्णता प्रमाण पत्र के पहले भवन अनुज्ञा नहीं
अभी काॅलोनाइजर/निर्माण एजेंसी को विकास पूर्ण करने का प्रमाण पत्र नहीं मिलने तक भवन निर्माण की अनुमति नहीं दी जाती है। अब कॉलोनी विकास की अनुमति मिलते ही प्लॉटधारक भवन निर्माण की अनुमति ले पाएंगे।
बंधक संपत्ति मुक्त करने के नियम भी बनाए
सरकार ने बंधक संपत्तियों को मुक्त करने के लिए भी नियम बना दिया है। क्रेडाई इंदौर के संदीप श्रीवास्तव के मुताबिक कॉलोनाइजर यदि 50% विकास कर देता है तो 50% प्लॉट मुक्त हो जाएंगे। पहले रेरा के चक्कर काटना पड़ते थे। अब कलेक्टर और निगमायुक्त ही ऐसा कर सकेंगे।
0 टिप्पणियाँ