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टीकों से आबादी पता चलेगी, जनगणना 2031 तक टलेगी:जन्म-मृत्यु के डेटा और वोटर आईडी को आधार से जोड़ने से आबादी का अनुमान लगेगा

 

ऐसे में करीब 12,695 करोड़ रु. बच जाएंगे। साथ ही 30 लाख कर्मचारियों की 2-3 साल चलने वाली कवायद बच जाएगी। - Dainik Bhaskar
ऐसे में करीब 12,695 करोड़ रु. बच जाएंगे। साथ ही 30 लाख कर्मचारियों की 2-3 साल चलने वाली कवायद बच जाएगी।

कोरोना की वजह से दो साल से स्थगित हो रही जनगणना को अब 2031 तक टालने की तैयारी कर ली गई है। सूत्र बता रहे हैं कि इस बारे में केंद्र सरकार आने वाले दिनों में घोषणा करेगी। दरअसल, कोरोना के खिलाफ जारी टीकाकरण की वजह से केंद्र सरकार को टीका लगाने वाले 84.67 करोड़ वयस्कों (18+) की सटीक जानकारी मिल चुकी है। अब 15 से 18 साल के किशोरों का वैक्सीनेशन शुरू हो रहा है।

इससे सरकार को लगभग पूरी आबादी की संख्या का अंदाजा हो जाएगा। इसलिए सरकार का मानना है कि जनगणना को 2031 तक टालने से कोई खास नुकसान नहीं होगा। केंद्र सरकार ने जूरिस्डिक्शन फ्रीज करने का फैसला 30 जून 2022 तक टाल दिया है। जनगणना टलने का यह सबसे बड़ा संकेत है। इससे पहले इसके लिए 31 दिसंबर 2020 और फिर 31 दिसंबर 2021 की समय सीमा तय की गई थी।

जूरिस्डिक्शन फ्रीज करने का फैसला जनगणना शुरू करने से 3 महीने किया जाता है। इसके बाद किसी भी जिले, ब्लॉक या गांव की सीमाएं नहीं बदली जा सकतीं। जाहिर है कि अब जनगणना का फैसला होता भी है तो 2022 के आखिरी 3 महीने तक से पहले इसे शुरू नहीं किया जा सकेगा। ऐसे में यदि नया टाइम फ्रेम जारी किया जाता है तो जनगणना के अंतिम आंकड़े 2027 से पहले जारी नहीं हो सकेंगे।

अहम बात यह है कि ये आंकडे 2031 तक ही मान्य रहेंगे। इसलिए सिर्फ 4 साल के लिए राष्ट्रव्यापी कवायद करने का कोई खास औचित्य नहीं रहेगा। सूत्रों की मानें तो टीकाकरण के अलावा डेटा इंटीग्रेशन से भी जनसंख्या के सही-सही आंकड़े सरकार को मिल रहे हैं। जन्म-मृत्यु पंजीकरण कानून में प्रस्तावित संशोधन से रास्ता और भी आसान हो जाएगा।

वोटर आईडी को आधार से जोड़ने का ताजा प्रस्ताव भी जनगणना निदेशालय का काम आसान हो जाएगा। ऐसे में करीब 12,695 करोड़ रु. बच जाएंगे। साथ ही 30 लाख कर्मचारियों की 2-3 साल चलने वाली कवायद बच जाएगी। गृह मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति में शामिल विपक्षी सदस्यों ने एनपीआर और एनआरसी का मुद्दा उठाते हुए यह सलाह दी थी कि जनसंख्या रजिस्टर को अपडेट करने का काम आधार से मिले डेटा से किया जा सकता है। इससे सियासी टकराव भी कम होगा।

जनगणना स्थगित रखने के समर्थन में तर्क

  • जनसंख्या का डेटा वैक्सीनेशन के जरिए सरकार के पास एकत्र हो रहा है। बच्चों का वैक्सीनेशन होने के बाद देश की आबादी का सही-सही अंदाजा लग जाएगा।
  • 2026 में लोकसभा सीटों का परिसीमन प्रस्तावित है। यह परिसीमन 2021 की जनगणना के आधार पर होना था। अब अगर 2022-23 में जनगणना से शुरू हुई तो परिणाम 2027 तक मिल जाएंगे। ऐसे में यह परिसीमन भी टल सकता है।
  • जनगणना में 30 लाख कर्मचारी लगेंगे। ज्यादातर स्कूल स्टाफ होगा। कोविड से पढ़ाई का नुकसान हुआ है। ऐसे में टीचर्स को दूसरे काम में लगाना ठीक नहीं होगा।
  • 2024 में आम चुनाव होने हैं। 2022 में 7 और 2023 में 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें भी कर्मचारी लगेंगे। ये सारी कवायद एक साथ बेहद मुश्किल है। इसलिए जनगणना टालने पर गंभीरता से विचार चल रहा है।

चूंकि 2031 में जनगणना होनी ही है, इसलिए 12,695 करोड़ रु. बचाए जा सकते हैं, जो जनगणना और एनपीआर के लिए स्वीकृत हैं। 3 साल विलंब की वजह से खर्च बढ़ सकता है।

सियासी पहलू

एनआरसी और एनपीआर पर चल रहा टकराव भी 2031 तक टल जाएगा
एनआरसी और एनपीआर को लेकर केंद्र सरकार और 11 राज्यों के बीच असहमति है। एनपीआर को लेकर पहले भी विरोध प्रदर्शन की नौबत आ चुकी है। ऐसे में केंद्र सरकार फिर से नई परेशानी नहीं चाहती। जनगणना और एनपीआर का काम 2031 तक स्थगित होने से यह नौबत भी टल जाएगी। हालांकि, भाजपा के एजेंडे में एनसीआर और एनपीआर आगे भी बना रहेगा, क्योंकि इससे उसकी सियासी लकीर स्पष्ट होती है।

बड़ी कवायद

जनगणना का टाइमफ्रेम ऐसा रखने की तैयारी थी, जो अब संभव नहीं लगती

  • 2022-23: जनगणना/एनपीआर के लिए मोबाइल एप और सीएमएमएस पोर्टल के टेस्ट होंगे।
  • 2023-24: जनगणना 2021 के पहले चरण का फील्डवर्क, जिससे घर/संपत्ति का डेटा होता है।
  • 2024-25: जनसंख्या को गिनने का चरण शुरू होगा।
  • 2025-26: प्रोविजनल डेटा जारी होगा। इसमें प्राइमरी संकेतक होते हैं।
  • 2026-27: जनगणना की 250 से अधिक डेटा टेबल जारी होंगी।

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