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वन विभाग का कमाल:710 वर्ग किमी वन क्षेत्र में तेंदुए, चीतल, नीलगाय, लकड़बग्घे, लोमड़ी गिन लिए, दिखा एक भी नहीं

 

इस बार की गणना में टाइगर के पगमार्क भी मिले हैं। - Dainik Bhaskar
इस बार की गणना में टाइगर के पगमार्क भी मिले हैं।

710 वर्ग किलोमीटर में फैले इंदौर वन मंडल में जंगली जानवरों की गणना कर ली गई है। वनकर्मियों ने जंगलों में घूमकर जानवरों के होने का अंदाज लगाया है। गणना के लिए विशेष डिजिटल एप भी बनाया गया था। वनकर्मियों ने जंगल में जानवरों के होने के प्रमाण भी अपलोड कर दिए, लेकिन खास बात यह है कि गणना के दौरान एक भी बाघ, तेंदुआ, लकड़बग्घा, चीतल, सांभर, लोमड़ी जैसा जंगली जानवर नहीं दिखा।

पेड़ों पर जानवरों के खरोंचने, जैविक अपशिष्ट, बाल, पगमार्क से अंदाजा लगाकर ही जानकारी भेज दी गई। हर दो साल में जंगली जानवरों की गणना की जाती है। पिछले दिनों इंदौर, महू, मानपुर और चोरल रेंज के वन क्षेत्र में वनकर्मियों ने गणना की। सात दिन चली गणना में किसी वनकर्मी को कोई जंगली जानवर नहीं दिखा, जबकि इस बार इंदौर वन मंडल उत्साहित है कि इंदौर मंडल में बाघ की मौजूदगी के प्रमाण मिले हैं। इससे पहले 2017 की गणना में इंदौर वन मंडल में 40 से ज्यादा तेंदुए, चीतल, नीलगाय, लकड़बग्घे, लोमड़ी, भेड़की सहित अन्य प्रजाति के जंगली जानवर होना बताया है। गणना के आंकड़े बाद में जारी होंगे।

जंगलों में पिच बनाकर पगमार्क लेते हैं
जंगली जानवरों की गणना के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं। रास्ते समतल कर मिट्टी डाली जाती है। रातभर में अगर कोई जानवर इस पिच पर आता है तो पगमार्क मिल जाते हैं। मवेशियों के शिकार भी जंगली जानवरों के होने के प्रमाण देते हैं। सघन वन क्षेत्रों में नाइट विजन कैमरे भी लगाए जाते हैं। इनमें कभी जानवरों के फोटो भी कैप्चर हो जाते हैं। अपशिष्ट की जांच से भी पता चल जाता है कि कौन सा जानवर सक्रिय है।

जबलपुर भेजे जाते हैं सैंपल
एसडीओ एके श्रीवास्तव बताते हैं, गणना के आंकड़े फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट जबलपुर में जांच के बाद नेशनल फॉरेस्ट इंस्टिट्यूट देहरादून भेजे जाते हैं। वहां से राज्यवार आंगड़े सार्वजनिक की जाती है।

आसपास घना जंगल नहीं
रिटायर्ड वन अधिकारी अशोक खराटे के मुताबिक इंदौर वन मंडल तो क्या वृत्त में कहीं घना जंगल नहीं बचा है। घना जंगल यानी, जहां दोपहर 12 बजे भी अंधेरा महसूस हो। केवल चोरल रेंज में सामान्य जंगल बचा है।

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