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दक्षिण भारत के 5 लक्ष्मी मंदिर:चैन्नई में कुबेर के साथ, वहीं आंध्रप्रदेश में भगवान विष्णु से नाराज देवी पद्मावती की होती है पूजा

 

  • कांचीपुरम और वेल्लोर के लक्ष्मी मंदिर का वैभव सबसे अलग, सैकड़ों किलो सोना और करोड़ों रूपयों के गहनों से होता है देवी का श्रंगार

आज महालक्ष्मी पूर्व यानी दीपावली है। इस त्योहार पर देवी लक्ष्मी की पूजा और दर्शन का विशेष महत्व ग्रंथों में बताया गया है। इसलिए दीपावली पर देशभर के लक्ष्मी मंदिरों में भीड़ रहती है। भारत में देवी लक्ष्मी के ऐसे कई मंदिर हैं, जिनका अपना ऐतिहासिक महत्व है। हजारों साल पुराने मंदिरों से लेकर नए मंदिरों तक में देवी लक्ष्मी का वैभव देखा जा सकता है।

दक्षिण भारत में देवी के ऐसे ही खास मंदिर हैं। जिनमें कहीं देवी लक्ष्मी की पूजा कुबेर के साथ की जाती है तो कहीं आठ रूपों में यानी अष्टलक्ष्मी मंदिर है। जानिए तमिलनाडु के चार और एक आंध्रप्रदेश का खास महालक्ष्मी मंदिर के बारे में।

यहां कुबेर के साथ विराजती हैं देवी लक्ष्मी - चेन्नई (तमिलनाडु)
हिन्दू धर्मग्रंथों व पुराणों में लक्ष्मी जी को धन और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी माना गया है। वहीं कुबेरजी को भी धन स्वामी माना जाता है। चेन्नई में एक ऐसा मंदिर है, जहां इन दोनों की प्रतिमा एक साथ विराजित है। कहा जाता है कि दुनिया में यही एकमात्र मंदिर है, जहां इस रूप में कुबेर लक्ष्मी संग विराजे हैं।
तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के श्रीलक्ष्मी कुबेर मंदिर में दीपोत्सव के लिए दुनियाभर से लाखों भक्त इकट्ठा होते हैं। इस मंदिर की विशेषता यहां विराजमान लक्ष्मी और कुबेर की काले पत्थर से निर्मित प्रतिमाएं हैं। यहां कुबेर अपनी पत्नी सिद्धरानी के साथ विराजित हैं। उनके पीछे मां लक्ष्मी स्थापित हैं जो उन्हें आशीर्वाद देते हुए दिखाई देती हैं। इस मूर्ति के पास मछली की दो प्रतिमा रखी गई हैं और ऐसी ही मछली यहां के मंदिर प्रांगण में रखी गई है जिस के साथ एक कछुआ भी रखा गया है। ऐसी मान्यता है कि कुबेरजी को हरा रंग पसंद है। इस वजह से मंदिर में और इसके आस-पास हरे रंग का प्रयोग किया गया है। यहां भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित है। यहां कुबेर गजराज पर वि राजमान हैं।

श्रीहरि से नाराज होकर यहां पधारीं लक्ष्मी जी - तिरुपति (आंध्रप्रदेश)
तिरुपति से तकरीबन 5 किमी की दूर पद्मावती देवी मंदिर है। इसे अलरमेलमंगपुरम भी कहते हैं। अलर का अर्थ कमल, मेल का मतलब ऊपर, मंग यानी देवी और पुरम को स्थान कहा जाता है। प्राचीन कथा के मुताबिक यहां मौजूद पद्मसरोवर से देवी महालक्ष्मी एक स्वर्ण कमल पर विराजित होकर प्रकट हुई थीं। प्रसिद्ध कथा के मुताबिक, महर्षि भृगु ने श्री विष्णु की छाती पर पैर रखा था। जिससे देवी नाराज हुईं और वैकुंठ छोड़ पाताल लोक में आ गईं। वे 12 सालों तक इस पुष्करिणी में रहीं और 13वें साल में कार्तिक पंचमी को पद्मावती के रूप में देवी प्रकट हुईं। यहां हर दिन सुबह कल्याणोत्सव का आयोजन होता है जिसके बाद गृहस्थ श्रद्धालु देवी दर्शन कर पाते हैं।

देवी लक्ष्मी को सिंदूर लगाकर होती है पूजा - कांचीपुरम (तमिलनाडु)
ये एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां मां लक्ष्मी की पूजा सिंदूर लगाकर होती है। इसके पीछे मान्यता है कि किसी विवाद के चलते विष्णु ने लक्ष्मी जी को कुरूप होने का श्राप दिया था। मां कामाक्षी की पूजा कर उन्होंने पाप से मुक्ति पाई थी। उसी समय मां कामाक्षी ने कहा था कि वह यहां लक्ष्मी के साथ विराजेंगी। उन्हें चढ़ने वाले प्रसाद से लक्ष्मी की भी पूजा होगी, मगर लक्ष्मी को यहां आने वाले की मनोकामना पूरी करनी होगी। कामाक्षी को प्रसाद में सिंदूर चढ़ता है जो लक्ष्मी को चरणों से शीश तक लगाया जाता है।
मंदिर के मुख्य पुजारी के मुताबिक 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा के बेशकीमती गहनों से देवी का श्रंगार होता है। साथ ही इस्तेमाल होने वाली मालाएं भी केसर, बादाम, काजू, कमल, चमेली, ऑर्किड, गुलाब से बनी होती हैं। 15-20 किलों की ये मालाएं 5 लाख रुपए में तैयार होती हैं। मंदिर का मुख्य गुंबद 76 किलो सोने से बना है, जबकि नवरात्रि और कई मौकों पर जिस रथ पर देवी सवार होती हैं। वो 20 किलो सोने से बनाया गया है। देवी कामाक्षी का ये रूप आठ साल की कन्या का है।

देवी लक्ष्मी का स्वर्ण मंदिर - वेल्लोर (तमिलनाडु)
तमिलनाडु के वेल्लोर में मौजूद श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर देश के बड़े लक्ष्मी तीर्थ में से एक हैं। ये अपने आप में अनोखा मंदिर है, क्योंकि इस मंदिर को बनाने में तकरीबन 15 हजार किलो शुद्ध सोने का इस्तेमाल हुआ है और ये तकरीबन 100 एकड़ में फैला मंदिर है। माना जाता है कि दुनिया में किसी भी मंदिर में इतना सोना इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसमें देवी लक्ष्मी की मूर्ति भी पूरी तरह सोने से बनी है। ये मंदिर गोलाकार है। मंदिर परिसर में बाहर की तरफ एक सरोवर है। जिसमें भारत की सभी मुख्य नदियों का पानी लाया गया है। इसलिए इसे सर्वतीर्थम सरोवर कहते हैं। मंदिर के बाहरी परिसर को श्रीयंत्र के रूप में बनाया है। जिसके बीच में महालक्ष्मी मंदिर है। मुख्य मंदिर तक जाने के लिए कई तोरणद्वार वाला रास्ता है। देवी अभिषेक के लिए मंदिर ब्रह्ममुहूर्त में खुलता है और दर्शन के लिए सुबह आठ बजे बाद लोगों को प्रवेश दिया जाता है।

एक नहीं, पूरी आठ लक्ष्मियों का निवास - चेन्नई (तमिलनाडु)
चैन्नई में समुद्र किनारे मौजूद लक्ष्मी मंदिर इसलिए अनूठा है क्योंकि यहां एक नहीं, पूरी आठ लक्ष्मी रूपों की प्रतिमाएं मौजूद हैं। इसलिए इसे अष्टलक्ष्मी मंदिर कहते हैं। इस मंदिर का मुख समुद्र की ओर है क्योंकि पौराणिक कथा के मुताबिक समुद्र मंथन के बाद देवी लक्ष्मी का प्रादुर्भाव समुद्र से ही हुआ था। अष्टलक्ष्मी में शामिल हैं- आदि लक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, राजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी और विद्यालक्ष्मी। विभिन्न तल वाले इस मंदिर के मुख्य गुंबद पर देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। मंदिर में अष्टलक्ष्मी की मनभावन मूर्तियों के साथ विष्णु के दशावतार के विग्रह भी हैं। मंदिर में आठ मंदिरों के बाद एक नवां मंदिर है। जिसमें देवी लक्ष्मी विष्णु जी के साथ विराजी हैं। खास बात ये है कि मंदिर का निर्माण ॐ के आकार में हुआ है। सभी लक्ष्मी मूर्तियों की बनावट एक-दूसरे से अलग हैं।

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