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फर्जी तरीके से पदोन्नत IAS अफसर मामला:20 से अधिक सिग्नेचर की होगी फॉरेंसिक जांच, जिस दिन जज छुट्‌टी पर उसी दिन आदेश देना बताया गया; कोर्ट कर्मचारियों की भूमिका भी संदिग्ध

 

मध्यप्रदेश में फर्जी तरीके से पदोन्नति पाने वाले संतोष वर्मा को रविवार शाम कोर्ट से 14 जुलाई तक पुलिस रिमांड पर भेजा गया। मामले में कोर्ट कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध बताई जा रही है। जिस दिन का आदेश तैयार किया गया था, उस दिन जज छुट्‌टी पर थे। वहीं शनिवार को एमजी रोड थाने में बंद संतोष वर्मा की आंखें नम होती रही, वो बार- बार आंसू पोछते नजर आए। देर शाम तक रिश्तेदारों और परिचितों का थाने पर आना जाना चलता रहा, लेकिन पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए संतोष वर्मा से किसी को नहीं मिलने दिया।

कोतवाली सीएसपी हरीश मोटवानी के मुताबिक कुछ कोर्ट कर्मियों के बीच की वाट्सऐप चैटिंग भी सामने आई है। मामले में कोर्ट कर्मचारी कुश हार्डिया, महेश भाटी और नीतू चौहान के बयान भी लिए गए हैं। तीनों से कोई खास जानकारी नहीं मिली है, लेकिन प्रधान लिपिक पुरोहित ने स्पष्ट कर दिया है कि संतोष वर्मा ने ही नकल आवेदन पेश किया था। उसने कंप्यूटर में एंट्री दर्ज की और न्यायाधीश विजेंद्र सिंह रावत की ओर से डायरी प्राप्त कर वर्मा को नकल दी। इसे साफ हो गया है कि फर्जी आदेश बनने में कोर्ट कर्मचारियों की भूमिका हो सकती है। सूत्रों की माने तो कोर्ट द्वारा जारी गए फर्जी दस्तावेज में फॉरेंसिक जांच होना बाकी है। अब अक्षरों (font) का मिलान भी किया जाएगा, इससे साफ हो जाएगा कि कोर्ट आदेश किस जगह तैयार हुआ है।

तीन दिन में भोपाल भेजा डीपीसी के लिए पत्र
सूत्रों की माने तो 6 अक्टूबर को जज विजेंद्र सिंह रावत द्वारा यह जजमेंट दिया जाना बताया गया है, उस दिन जज अवकाश पर थे। आदेश की सर्टिफिकेट कॉपी 7 अक्टूबर को कोर्ट से निकलना बताई गई है, वह संतोष वर्मा ने 8 अक्टूबर को यह कॉपी भोपाल में पेश कर दी थी।

इस मामले के लिए बनाया फर्जी आदेश

लसुडिया थाने में युवती ने शिकायत की थी। शिकायत में उसने कहा था कि उज्जैन के अपर कलेक्टर संतोष वर्मा ने शादी का झांसा देकर उन्हें साथ रखा और ज्यादती की। उसने संतोष के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की थी। इसी दौरान दोस्ती हुई, जो प्रेम में बदल गई। संतोष वर्मा ने इस मामले में केस खत्म होने का फर्जी आदेश तैयार करवाया था।

एक और मामले में भी ऐसा किया

हर्षिता अग्रवाल ने एमजी रोड पुलिस और आईजी को भी एक आवेदन दिया है। इसमें आरोप है कि उज्जैन में अपर कलेक्टर रहने के दौरान वर्मा ने एक्सिडेंट करवाकर उसे मारने की कोशिश की थी। शिकायत उज्जैन के एक थाने में दर्ज करवाई थी, लेकिन वहां भी उन्होंने अपने केस में फर्जीवाड़ा कर खुद को निर्दोष बता रखा है। यह शिकायत और थाने की चरित्र सत्यापन की रिपोर्ट भी उन्होंने आईएएस काडर लेने में छिपाई है।

क्यों बनाया फर्जी आदेश

राज्य प्रशासनिक सेवा से भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रमोट करने के अधिकारी की जांच की जाती है। मामूली अपराध होने पर आईएएस अवॉर्ड रुक जाता है। ऐसे में वर्मा के खिलाफ दो केस लंबित होने की जानकारी डीपीसी को मिलती तो उन्हें अपने सेवाकाल में कभी आईएएस अवॉर्ड होता ही नहीं। इसलिए उन्होंने फर्जी आदेश बनाकर डीपीसी के समक्ष लगा दिया।


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