- फोरम की बैठक में बोले- यूटर्न से बेइंतहा दर्द महसूस कर रहा हूं
रजनीकांत ने बीमारी का हवाला देते हुए सियासी यात्रा पर विराम लगा दिया है। हालांकि, उनका फोरम ‘रजनी मक्कल मंदरम’ फैन क्लब के रूप में सक्रिय रहेगा। 20 मिनट बंद तक कमरे में चली बैठक में रजनीकांत ने कहा- सियासी यूटर्न की वजह से मैं बेइंतहा दर्द से गुजर रहा हूं। आखिर रजनीकांत ने राजनीति छोड़ने का फैसला क्यों किया? इस पर राजनीतिक विश्लेषक रंगराजन कहते हैं- 31 दिसंबर 2017 को उन्होंने सभी 234 विधानसभा सीटों पर लड़ने का फैसला किया था। लेकिन, इसकी कोई कार्ययोजना नहीं बन पाई।
3 साल तक पार्टी कागज पर ही रही। वे भले ही सेहत का हवाला दे रहे, लेकिन वे भ्रम और दबाव में थे। भाजपा ने उन पर राजनीति में आने का दवाब बनाया था। इसीलिए रजनीकांत तमिलनाडु की द्रविड़ विचारधारा की जगह भाजपा-संघ के करीब दिखे। उन्होंने मोदी-अमित शाह को कृष्ण-अर्जुन तक कहा। भाजपा काे लगा था कि रजनीकांत के सियासत में आने से तमिल लोगों के बीच यह धारणा बदल जाएगी कि राज्य का सियासी मैदान सिर्फ द्रमुक-अन्नाद्रमुक तक सीमित है। हमने देखा है कि कैसे भाजपा के शीर्ष नेता राजनीकांत के घर पर लाइन लगाकर खड़े थे।
द्रविड़ दिग्गज करुणानिधि और जयललिता के निधन से पैदा हुए सियासी वैक्यूम के बाद रजनीकांत को भी भरोसा हो गया था कि वे भाजपा की मदद से इस खालीपन को भर सकते हैं। लेकिन, जब तीन साल बाद भी उन्हें सियासी जमीन नहीं दिखी तो उन्होंने खराब सेहत का हवाला देकर सियासत ही छोड़ दी। रजनीकांत अभिनेता के तौर पर इतिहास में अमर होना चाहते हैं, एक असफल नेता की तौर पर कतई नहीं। इसीलिए, उन्होंने सियासी यात्रा पर विराम लगा दिया।
बवंडर से बचने के लिए सियासत छोड़ना रजनीकांत का रणनीतिक कदम
राजनीतिक विश्लेषक राजशेखर कहते हैं कि 2016 में रजनीकांत का किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था। उसके बाद राजनीति में आए। फिर सामान्य ब्लड प्रेशर की शिकायत के बाद पीछे हट गए। मैं इसे भाजपा से निपटने के उनके रणनीतिक कदम के तौर पर देखता हूं।
रजनीकांत पर किताबें लिखने वाले राजनीतिक विश्लेषक भरत कुमार बताते हैं- बेशक एमजीआर, जयललिता, करुणानिधि, अन्ना ने सिनेमा की ताकत के जरिए राजनीतिक लाभ उठाया। लेकिन, रजनीकांत उनसे उलट हैं। वे एंटरटेनर हैं। अच्छे इंसान भी हैं। लेकिन, सियासत के लिए इतना होना काफी नहीं है। तमिलनाडु में मोदी लहर जैसी भी कोई बात नहीं है, इसलिए द्रमुक-अन्नाद्रमुक के मुकाबले खड़े होने के लिए जो कुछ भी करना था, रजनीकांत को अकेले ही करना था।
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