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जीवन मंत्र:भक्त होने का अर्थ है, जो भी काम करो पूरे होश में करो

 

कहानी - संत तुकाराम  कर्म योगी थे। महाराष्ट्र में उनका जन्म हुआ था। इनके पिता का व्यापार भी बहुत अच्छी तरह चल रहा था। कुछ समय बाद व्यापार में परेशानियां आने लगीं। तुकाराम जी का विवाह हुआ, परिवार भी चलाया, लेकिन एक के बाद एक परिवार के सदस्यों की मृत्यु हो गई।

लोग देखा करते थे कि कैसी भी कठिनाई हो, तुकाराम विचलित नहीं होते थे। हमेशा उनके मुंह से यही निकलता, 'विट्ठल जो तेरी इच्छा।' कोई घटना घटती तो लोग यही कहते कि आपके ऊपर फिर से ये नई विपत्ति आ गई, तब वे कहते, 'मेरा तो देने वाला भी विट्ठल है और लेने वाला भी विट्ठल है।'

एक दिन भगवान पांडुरंग ने बालाजी चैतन्य रूप में तुकाराम जी को दर्शन दिए, उस समय वे समाधि अवस्था में बैठे हुए थे। 24 वर्ष की उनकी उम्र थी। जीवन के सारे संघर्ष वे देख चुके थे। उसके बाद धीरे-धीरे सारे काम तो वे जीवन में करते रहे, लेकिन भक्त बनकर।

लोगों ने उनसे पूछा, 'अब आपको परमात्मा मिल गए हैं, आप भी जंगल चले जाएंगे।'

तुकाराम जी ने कहा, 'जंगल जाने की क्या आवश्यकता है। जो कुछ जंगल में मिलता है, वह सब यहीं आसपास भी है।' वे अक्सर कहा करते थे कि मुझे जो कुछ मिला है, वह नाम स्मरण से मिला है। नाम स्मरण तो कर्म योगी सभी काम करते हुए भी कर सकता है।'

उस समय छत्रपति शिवाजी को जब राजनीति में कुछ जानकारी की आवश्यकता हुई, उन्हें कुछ ज्ञान लेना था तो वे तुकाराम से उपदेश लेने आए थे। लोगों को आश्चर्य होता था कि एक ओर तो तुकाराम भक्ति करते थे और दूसरी ओर छत्रपति शिवाजी को ज्ञान भी दे गए।

सीख - तुकाराम ने ये सीख दी है कि भक्त होने का मतलब ये नहीं है कि हम घर-परिवार और समाज से अलग रहने लगें। भक्त होने का मतलब ये है कि जो भी काम करो, जागरूक होकर करो। संसार में आए हैं तो संसार को छोड़ना नहीं है। संसार में शांति से रहना चाहिए।


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