कहानी - खेतड़ी के रज्जा स्वामी विवेकानंद जी का बहुत सम्मान करते थे। वे स्वामी जी के अंधभक्त थे। जब स्वामी जी भारत भ्रमण कर रहे थे, तब वे खेतड़ी भी पहुंचे।
खेतड़ी नरेश ने विचार किया कि विवेकानंद जी मेरे राज्य में आए हैं तो मुझे इनके सम्मान में एक बड़ा आयोजन करना चाहिए।
राजा ने दरबार में स्वामी जी का सम्मान समारोह रखा। समारोह में एक नर्तकी को बुलाया गया था। नर्तकी ने अपनी प्रस्तुति शुरू की। विवेकानंद जी ने सोचा, 'एक स्त्री नृत्य करेगी, गायन करेगी तो मेरे जैसा संन्यासी ये सब देखेगा, जो अच्छा नहीं रहेगा। ये मुझे शोभा नहीं देता है। ये तो राजा हैं, इनकी राजसभा में सब हो सकता है।'
ये सब सोचकर स्वामी जी राजा से जाने के लिए अनुमति मांगते तो राजा उन्हें आग्रह करके फिर से बैठा लेते। नर्तकी ये सब देख रही थी कि विवेकानंद जी रुकते हैं या जाते हैं। जब वे रुक गए तो नर्तकी ने एक भजन गाना शुरू किया।
भजन का भाव ये था कि हमारे अवगुणों को आप अपने हृदय में मत रखिए। जो लोहा कसाई की कटार में रहता है, वही किसी मंदिर का कलश भी बन सकता है। पारस पत्थर किसी भी लोहे में भेद नहीं करता है। इस पत्थर के स्पर्श में जो भी लोहा आएगा, उसे ये सोना बना देगा। गंगा अपने भीतर आने वाले हर जल को स्थान देती है। आप ऐसे ही हैं। हम आपकी शरण में आए हैं, आप हमें अपनी शरण में स्थान दें।
नर्तकी के भजन से राजा हैरान हो गए थे। बाकी सब भी अपने-अपने ढंग से प्रतिक्रिया दे रहे थे। ये भजन सुनकर स्वामी जी की आंखों में आंसू आ गए। कार्यक्रम खत्म होने के बाद स्वामी जी उस नर्तकी के पास पहुंचे और सम्मानपूर्वक उससे कहा, 'मां, आज मुझे महसूस हुआ कि भक्ति किस स्तर पर की जा सकती है। आपकी जो भी सामाजिक स्थिति हो, लेकिन अगर मैं भेद करता तो ये पाप होता।'
सीख - समाज में सभी को अच्छा-बुरा अवसर मिलता है। पता नहीं, कब-किसके क्या हालात बन जाएं, इसीलिए सभी का सम्मान करें। इंसानों में भेद करेंगे तो ये भी एक पाप है।
0 टिप्पणियाँ