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जीवन मंत्र:व्यापार या नौकरी करते हुए ईमानदार रहना और किसी को धोखा न देना भी धर्म ही है

 

कहानी - जाजली नाम के एक मुनि ने ऐसा तप किया था कि पूरी प्रकृति उनका सम्मान करने लगी थी। वे निराहार रहते थे और पूरे समय खड़े होकर मंत्रों का जप करते थे।

जब वे घोर तप कर रहे थे, तब एक गौरेया पक्षी का जोड़ा उनकी जटाओं में घुस गया। ऋषि तप कर रहे थे तो उनको इससे कोई फर्क नहीं पड़ा।

गौरेया के जोड़े ने मुनि की जटाओं में ही अपना घोंसला बना लिया और वहीं उस जोड़े के बच्चों का जन्म भी हो गया। धीरे-धीरे गौरेया के बच्चे बड़े हुए, उनके पंख निकल आए। पक्षी इधर-उधर उड़ते और इनकी जटाओं में वापस आ जाते। मुनि ऐसे ध्यान में रहते कि उन्हें पक्षियों के आने-जाने से भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।

एक दिन गौरेया के बच्चे ऐसे उड़े कि फिर लौटकर न आए, लेकिन जाजली मुनि को कोई फर्क नहीं पड़ा। जाजली के मन में विचार आया कि मैंने घोर तप किया है, मैं धर्म का अर्थ जानना चाहता हूं, वास्तव में धर्म है क्या? लेकिन ऐसा लग रहा है कि मैं ये जान नहीं पाया हूं।

उस समय आकाशवाणी हुई और ऋषि से कहा गया कि बनारस जाओ, वहां तुलाधार नाम का व्यक्ति मिलेगा। तुम उससे सीख सकोगे कि धर्म क्या है?

जाजली मुनि तुलाधार के पास पहुंचे। तुलाधार सामान तौल रहा था। जाजली मुनि को इस बात का घमंड था कि मैंने ऐसा तप किया है कि मेरी जटाओं में पक्षियों ने घोंसला बना लिया था, लेकिन मेरा तप भंग नहीं हुआ।

तुलाधार ने मुनि को देखते ही कह दिया, 'आप धर्म का ज्ञान लेने आए हैं, लेकिन धर्म को जीना पड़ता है।'

जाजली ने पूछा, 'बताओ, आपके हिसाब से धर्म क्या है?'

तुलाधार ने कहा, 'मैं व्यापार करता हूं। तौलकर सामान देता हूं। मेरे लिए यही धर्म है। मैं प्रयास करता हूं कि किसी के साथ धोखा न हो। मेरे लिए तुला के रूप में सब समान हैं। काम भले ही व्यापार का करता हूं, लेकिन सत्य और ईमानदारी के आधार पर। यही मेरा धर्म है।' मुनि जाजली समझ गए कि धर्म में जीना किसे कहते हैं।

सीख - कहानी हमें समझा रही है कि सिर्फ तपस्या करना ही धर्म नहीं है, अपने काम में ईमानदार रहना भी धर्म है। अपने कर्तव्य के लिए एकाग्र हैं तो हम धर्म में जी रहे हैं।

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