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मध्यप्रदेश:प्रदेश की पहली मशीन इंदौर के अरबिंदो कॉलेज में 3 सप्ताह में लग जाएगी, कोरोना वायरस के बदलाव का पता लगाया जा सकेगा

 


कोरोना वायरस के  म्यूटेशन की जांच के लिए अब प्रदेश को परेशान होने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जल्द ही इंदौर के अरबिंदो कॉलेज में कोरोना वायरस के म्यूटेशन जांचने की सुविधा होगी। मशीन 3 सप्ताह के अंदर लग जाएगी। अभी तक वायरस के म्यूटेशन की जांच के लिए सैंपल दिल्ली और पुणे भेजे जाते थे।

इंदौर के अरबिंदो अस्पताल में जीनोम सिक्वेंसिंग मशीन लगने के बाद वायरस के डीएनए और आरएनए में बदलाव की पहचान हो सकेगी। इसके लगने से और भी फायदे हैं। माता-पिता से मिलने वाली अनुवांशिक बीमारियां जैसे- थेलेसीमिया, हीमोफीलिया की स्क्रीनिंग भी की जाएगी, ताकि यह पता चलेगा कि यदि उनका कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसे कोई बीमारी तो नहीं होगी।

देशभर में जीनोम सिक्वेंसिंग के 10 लैब-

देश में इस वक्त जीनोम सीक्वेंसिंग के 10 ही लैब है। जहां से इसके बारे में पता लगाया जाता है। इनमें- इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (नई दिल्ली), CSIR-आर्कियोलॉजी फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (हैदराबाद), DBT - इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंसेज (भुवनेश्वर), DBT-इन स्टेम-एनसीबीएस (बेंगलुरु), DBT - नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल जीनोमिक्स (NIBMG), (कल्याणी, पश्चिम बंगाल), ICMR- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (पुणे) के लैब शामिल हैं।

क्या है जीनोम सीक्वेंसिंग

दरअसल, आसान शब्दों में कहा जाए तो जीनोम सीक्वेंसिंग एक तरह से किसी वायरस का बायोडाटा होता है। कोई वायरस किस तरह का है, किस तरह का वह दिखता है। इन सभी चीजों की जानकारी हमें जीनोम के जरिए मिलती है। इसी वायरस के विशाल समूह को जीनोम कहा जाता है। वायरस के बारे में जानने की विधि को जीनोम सीक्वेंसिंग कहते हैं। इससे ही कोरोना के नए स्ट्रेन के बारे में पता चला है।

जीनोम मैपिंग क्या है?

जीनोम मैपिंग के लाभ

  • हमारी कोशिकाओं के भीतर आनुवंशिक पदार्थ (Genetic Material) होता है जिसे हम DNA, RNA कहते हैं। इन सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है।
  • एक जीन के स्थान और जीन के बीच की दूरी की पहचान करने के लिये उपयोग की जाने वाली विभिन्न तकनीकों को ही जीन या जीनोम मैपिंग कहा जाता है।
  • अक्सर जीनोम मैपिंग का इस्तेमाल वैज्ञानिकों द्वारा नए जीन की खोज करने में मदद के लिये किया जाता है।
  • जीनोम में एक पीढ़ी के गुणों को दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित करने की क्षमता होती है।
  • ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट के मुख्य लक्ष्यों में नए जीन की पहचान करना और उसके कार्य को समझने के लिये बेहतर और सस्ते उपकरण विकसित करना शामिल है। जीनोम मैपिंग इन उपकरणों में से एक है।
  • मानव जीनोम में अनुमानतः 80 हज़ार से एक लाख तक जींस होते हैं।
  • जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स (Genomics) कहा जाता है।
  • जीनोम मैपिंग के माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं।
  • इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि हमारे देश के लोग अन्य देश के लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं और यदि उनमें कोई समानता है तो वह क्या है।
  • इससे पता लगाया जा सकता है कि गुण कैसे निर्धारित होते हैं तथा बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है।
  • बीमारियों का पता समय रहते लगाया जा सकता है और उनका सटीक इलाज भी खोजा जा सकता है।

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