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जीनाेम स्टडी:देश में 100 जातियों के 20 हजार लोगों की स्टडी हो रही, पता चलेगा- किस जाति में कौनसी बीमारी का खतरा, पर्सनलाइज दवा-चिप बनेंगी

 

डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी जीनोम्स इंडिया प्रोजेक्ट के तहत जीनोम्स की स्टडी करवा रही है। इस बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का जिम्मा भारत विज्ञान संस्थान, AIIMS जोधपुर सहित देशभर के 20 संस्थानों को दिया गया है।

कोरोना ने हेल्थ व मेडिकल साइंस को पूरी दुनिया में उच्च प्राथमिकताओं में ला दिया है। इसी का नतीजा है कि भारत सरकार भी अब फ्यूचर मेडिकल साइंस पर बेहद गंभीरता से काम कर रही है। डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलाॅजी जीनोम्स इंडिया प्रोजेक्ट के तहत देशभर की 100 जातियों के 20 हजार लोगों के जीनोम्स की स्टडी करवा रही है। इस बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का जिम्मा भारत विज्ञान संस्थान, एम्स जोधपुर सहित देशभर के 20 संस्थानों को दिया गया है।

यह क्रांतिकारी प्रोजेक्ट इतना अहम है कि- इससे देश में किस जाति में कौनसी बीमारी होने की आशंका अधिक व इससे कैसे बच सकते हैं, यह जानना संभव होगा। यदि किसी जाति में काेई बीमारी विशेष होने की अधिक आशंका है तो उसे पहले ही रोक सकेंगे। पर्सनलाइज इलाज होगा, जिसमें प्रत्येक रोगी को उसके अनुसार दवा एवं डोज दी जाएगी। इसके साथ ही यह स्टडी भविष्य में होने वाले इलाज के लिए मील का पत्थर साबित होगी।

एम्स राजस्थान, यूपी, हरियाणा में 10 जातियों के सैंपल ले रहा

एम्स के डीन डॉ. कुलदीप सिंह ने बताया कि 3 जनवरी 2020 से शुरू हुई इस स्टडी में AIIMS राजस्थान, हरियाणा व यूपी के कुछ इलाकों से सैंपल ले रहा है। राजपूत, ब्राह्मण, अग्रवाल, जाट, माहेश्वरी, जैन, माली, मुस्लिम, सिंधी, मीणा, गुर्जर आदि 10 जातियों के जीन की स्टडी की जाएगी। यह स्टडी AIIMS सहित 20 संस्थान देश के विभिन्न भागों में कर रहे हैं। एम्स विभिन्न जिलों से 500 व्यक्तियों के सैंपल ले चुका है।

जानिए- जीनोम स्टडी के परिणाम किस तरह मेडिकल साइंस को बदल देंगे

  • बीमारी होने की आशंका का पहले ही पता चलेगा।
  • एंटी नेटल, यानी गर्भ का भी इलाज हो सकेगा।
  • पर्सनलाइज इलाज, यानी किस व्यक्ति पर कौनसी दवा, कितनी डोज से असर पड़ेगा।
  • आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में जीनोम का डाटा डालने पर वह पूर्वानुमान बता देगा।
  • दवाओं का सॉल्ट व कॉम्बिनेशन बदलेगा, चिप भी बनने लगेंगी।
  • यदि किसी कम्युनिटी में काेई बीमारी विशेष की अधिक आशंका है तो उसे रोक सकेंगे।
  • बीमारी की सटीक व सूक्ष्मतम जानकारी मिलने से डॉक्टर बेहतरीन दवा-इलाज दे सकेंगे।
  • इंसान का निरोगी जीवन बढ़ेगा।

इस तरह हो रही स्टडी

  • व्यक्ति की सहमति के बाद ही उन पर स्टडी हो रही है। विभिन्न सैंपल लेकर बायोकेमिकल जांच करते हैं।
  • इसमें बीपी, डायबिटीज या अन्य बीमारी मिलने पर उसे स्टडी से अलग कर उन्हें सूचित करते हैं।
  • व्यक्ति के 4 प्रकार से सैंपल लिए जा रहे है। व्यक्ति का वजन, लंबाई, आंखों का रंग आदि लिए जाते हैं।
  • इसके बाद बॉडी कंपोजिशन, ब्लड टेस्ट और बाद में डीएनए लैब में अलग कर उस पर जीनोम स्टडी की जाती है।
  • डीएनए निकालने का काम एम्स की लैब में किया जाता है।
  • बॉडी कंपोजिशन टेस्ट में व्यक्ति का कितना मसल्स मांस व कितना फैट है, यह देखा जाता है।
  • विशेष मशीन को फील्ड में ले जाकर यह टेस्ट वहीं मौके पर किए जा रहे हैं। जयपुर, बाड़मेर, सिरोही, जोधपुर में सैंपल लिए है।

जातियों की जीनोम स्टडी इतनी आसान भी नहीं

जीनोम स्टडी इतनी जटिल होती है कि एक क्षेत्र विशेष में रहने वाली कम्युनिटी में डायबिटीज के जीन तो थे, लेकिन बीमारी नहीं। इसका कारण वहां के एनवायरमेंट का असर था।

एक व्यक्ति का जीनोटाइप 40 जीबी तक का

जीन मैपिंग बेहद जटिल व नैनो स्तर की होती है। जीन के दो हिस्से, कोडिंग व नॉन कोडिंग होते हैं। जीनोम के सीक्वेंस से बीपी, डायबीटिज, कैंसर आदि का पहले पता चल सकता है। एक व्यक्ति का जीनोटाइप डाटा 40 जीबी तक में आता है।

फ्लैश बैक- इस स्टडी ने ‘इलाज’ बदला

विश्व में सबसे पहले 1993 में जीनोम मैप पर कंसोर्टियम हुआ था। इसके बाद ही इंसान की जीनोम स्टडी सफलतापूर्वक की जा सकी। वर्ष 2003 में जब जीनोम स्टडी के रिजल्ट आए, तब इस आधार पर बीमारियां जल्दी डायग्नोस होने लगीं, एंटी नेटल इलाज शुरू हो पाया। इन सभी को देखते हुए देश में ये प्रोजेक्ट शुरू किया गया है।

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