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नए मूल्यों का नया परिवार:करोड़ों का बिजनेस और नौकरी छोड़ मिट्टी से जुड़े, बनाया अपना जहां

 

सभी सदस्यों ने अपनी चौपाल भी तैयार की है, जहां शाम का वक्त साथ बिताते हैं। बुुजुर्ग अपने अनुभव सुनाते हैं।
  • ग्राम पिवड़ाय में देशभर से आए 22 परिवारों के कॉरपोरेट्स, प्रोफेशनल्स बदल रहे हैं जिंदगी के मायने

लोग अब मूल्यों की तरफ लौट रहे हैं। बाहरी चमक-दमक से ज्यादा मन के सुकून को तरजीह दे रहे हैं। ग्राम पिवड़ाय में देशभर से आए कॉरपोरेट, प्रोफेशनल्स ने ऐसे ही मिट्टी से जुड़ अपनी अलग दुनिया बना ली है, जहां वे बच्चों को कहानियां सुनाते हैं, उनके साथ गाय का दूध दुहते हैं। साथ ही बनाते हैं 82 से ज्यादा ऑर्गेनिक और देशी उत्पाद ताकि लोग भी उनका महत्व समझ सकें। महानगरों से आए ये 22 परिवार अब खेती करते हैं। बच्चे गोशाला संभालते हैं। इनमें कुछ लोग आईआईटी पासआउट हैं तो कुछ करोड़ों के टर्नओवर वाली कम्पनियों के मालिक।

सभी कहते हैं जो सुकून मिट्टी के करीब आकर, अपनी जड़ों की ओर लौटकर मिला, वह करोड़ों की डील करने के बाद भी कभी महसूस नहीं हुआ। इंदौर से 25 किलोमीटर दूर पिवड़ाय में मैकेनिकल इंजीनियर अजय दायमा ने पत्नी और बिजनेस वुमन वर्षा के साथ 15 एकड़ जमीन पर ऐसा परिसर तैयार किया जो हमें एक बार फिर हमारी जड़ाें की ओर लाता है। इसे नाम दिया मानव चेतना विकास केंद्र। यहां किसी के घर में कभी ताला नहीं लगता। सभी परिवारों के लिए एक सामूहिक रसोई है और यहां सब साथ मिलकर खाना बनाते हैं। यहां न कोई नाैकर है न मालिक है। सब सेवक हैं।

गोशाला में करीब 100 गायें, हर गाय पहचानती है अपना नाम, पुकारते ही चली आती है
यहां बच्चे-बूढ़े सब मिल जुलकर काम करते हैं। 7 से 13 साल के बच्चे करीब 100 गायें संभालते हैं। दूध दुहने से पहले गाय के बछड़ों को भरपेट दूध पीने दिया जाता है। अपनापन इतना कि हर गाय, हर बछड़ा अपना नाम पहचानते हैं। बच्चे नाम पुकारते हैं तो गाय दौड़ी चली आती है। गौशाला का सारा काम बच्चे खुद करते हैं।

अजय दायमा बताते हैं - कई जगह जॉब करने के बाद मैंने पीएससी की और फिर मुझे सरकारी नौकरी मिल गई। लगा कि अब जिंदगी ठीक से गुजर जाएगी। 27 साल नौकरी में रहा। रुपए-पैसे बढ़िया मिलते रहे पर संतुष्टि नहीं थी। आनंद नहीं था। मैंने चिंतन किया तो समझ आया कि जीवन एक ही ढर्रे पर चल रहा है। मैंने तय कर लिया और एक दिन वीआरएस ले लिया। कुछ समय बाद पत्नी (इंडस्ट्रियल बिजनेस वुमन) के साथ इस कॉन्सेप्ट पर बात की। उसे ठीक लगा तो हमने पूरा सेटअप किया, जिसके मुताबिक प्रकृति के बीच बिना किसी नौकरी और व्यापार के भी बढ़िया जीवन जिया जा सकता है।

शहर में अकेलापन है, यहां आकर जाना क्या है जिंदगी
रायपुर के रहने वाले इंजीनियर तारकेश राव दो साल से यहां रह रहे हैं। उन्होंने बताया -जॉब के बाद खुद की फर्म शुरू की पर संतुष्टि नहीं मिल रही थी। मेरे भैया ने यहां के बारे में बताया। कुछ नया ट्राय करने के लिहाज से मैं आ गया और महज दो दिन में मुझे समझ आ गया कि यही तो जिंदगी है। यहां हम शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय व्यवस्था, स्वावलंबन, वस्तु विनिमय व्यवस्था सुदृढ़ करने के मॉडल पर काम करते हैं।

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