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वर्ल्ड वीगन डे :वीगनिज्म पर भारत में गूगल सर्च दोगुनी, मांसाहार के साथ दूध से बनी हर चीज से तौबा



  • विराट कोहली, कंगना, आमिर खान, आलिया समेत कई सेलिब्रिटीज वीगन बने

  • दुनिया की 83% खेती की जमीन पर पशुपालन, कैलोरी मिलती हैं सिर्फ 18%


  • दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया।


    जीव-जन्तुओं से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है।


    वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैगजीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है।


    यह जमीन अमेरिका, यूरोपीय यूनियन (ईयू), चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं।


    वीगनिज्म आखिर है क्या?
    फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है।


    प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं।




  • दुनिया में सबसे ज्यादा वेजिटेरियन आबादी वाले भारत में वीगनिज्म साल दर साल जोर पकड़ रहा है। पिछले कुछ सालों में ही विराट कोहली, अक्षय कुमार, आमिर खान, अनुष्का शर्मा जैसी तमाम हस्तियां वीगन हो गईं, तो आम लोगों ने भी गूगल पर वीगनिज्म या वीगन जैसे शब्दों को दोगुना से ज्यादा सर्च किया।


    जीव-जन्तुओं से मिलने वाले हर तरह की चीज को छोडऩे का यह वेस्टर्न लाइफ स्टाइल भारत के लिए यों तो नया है, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक परपंराओं के चलते एकदम अनजाना नहीं। यहां वेजिटेरियन होना कोई चौंकाने वाली बात नहीं। हां, दूध-दही और देशी घी के दीवाने इस देश में वेजिटेरियन से वीगन होना चुनौती भरा जरूर है। बावजूद इसके भारतीयों के बीच वीगनिज्म ट्रेंड करने लगा है।


    वीगन लाइफस्टाइल को लेकर पश्चिमी दुनिया में कई बड़ी रिसर्च हो चुकी हैं। मशहूर मैगजीन साइंस में प्रकाशित एक बड़ी रिसर्च में दावा किया गया कि गया है कि अगर मांस, दूध और दूध से बने प्रोडक्ट्स की खपत बंद हो जाए तो दुनिया में खेती की जमीन का इस्तेमाल 75% तक कम किया जा सकता है।


    यह जमीन अमेरिका, यूरोपीय यूनियन (ईयू), चीन और ऑस्ट्रेलिया के बराबर होगी। रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 83% खेती की जमीन का इस्तेमाल पशुपालन के लिए होता है, जबकि इनसे इंसानी जरूरत की केवल 18 % कैलोरी मिलती हैं।


    वीगनिज्म आखिर है क्या?
    फिलॉसिफी: जीने का वह तरीका जो भोजन, कपड़े या किसी दूसरे मकसद से जहां तक हो सके जानवरों के इस्तेमाल, शोषण और क्रूरता को रोकता है।


    प्रैक्टिकली: ऐसा शाकाहार जिसमें किसी जीव या जंतु से मिलने वाली किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। मधुमक्खियों से मिलने वाला शहद भी नहीं।




  • भारत में वीगनिज्म को लेकर शायद पहला रिकॉर्डेड किस्सा महात्मा गांधी और दूध को लेकर उनकी दुविधा से जुड़ा है। तब तो दुनिया में ही वीगनिज्म का ऐसा आइडिया नहीं था। हुआ यों कि दक्षिण अफ्रीका से 1915 में भारत लौटे महात्मा गांधी बिहार के चंपारण के बाद 1918 में गुजरात के खेड़ा में बड़ा किसान आंदोलन किया। इसके तुरंत बाद वे गंभीर पेचिश के शिकार हो गए।


    डॉक्टरों ने सलाह दी कि उन्हें ज्यादा प्रोटीन की जरूरत है। एक तरफ गांधी शाकाहारी थे तो दूसरी तरफ उन्हें दालें पच नहीं रही थीं। प्रोटीन के लिए उन्हें डॉक्टरों ने दूध लेने की सलाह दी। बस यहीं गांधी की वीगन दुविधा सामने आकर खड़ी हो गई है।


    दरअसल, गांधी दूध के लिए गायों पर की जाने वाली फूंका (काउ ब्लोइंग) नाम की प्रथा के खिलाफ थे। इसमें दूध दुहने के लिए गायों के अंग में हवा भरी जाती थी। वहीं, बछड़े की मौत होने पर उनकी खाल में भूसा भरकर तैयार डमी से गाय-भैंस को जिंदा बछड़े का अहसास दिलाने और दूध दुहने से भी गांधी सहमत नहीं थे। गांधी इन दोनों परंपराओं को गाय-भैंस के साथ हिंसा मानते थे। इसके चलते ही उन्होंने दूध या उससे बनने की सभी चीजें छोड़ दी थीं।


    एक तरफ महात्मा अपना प्रण नहीं तोड़ सकते थे तो दूसरी तरफ उनका जीवित रहना भी जरूरी थी। यही थी वीगन महात्मा गांधी की दुविधा। कस्तूरबा ने उन्होंने गांधी से गाय या भैंस की जगह जीने के लिए बकरी का दूध पीने की सलाह दी।


    गांधी ने यह बात तो मान तो ली मगर वे जानते थे कि उन्होंने अपने आदर्शों से समझौता कर लिया था। आत्मकथा सत्य के साथ मेरे प्रयोग में उन्होंने लिखा, मेरे इस कार्य का डंक अभी मिटा नहीं है और बकरी का दूध छोड़ने के विषय में मेरा चिंतन चल ही रहा है। बकरी का दूध पीते समय मैं रोज दुख का अनुभव करता हूं।




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