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भारत के इस गांव में आज भी नहीं होती है हनुमान जी पूजा. जानें कारण

देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में एक गांव ऐसा भी है जहां आज भी हनुमान जी की पूजा नहीं की जाती है. इसके पीछे एक त्रेता युग की एक पौराणिक कथा प्रचलित है.



 वैसे तो उतराखंड को भारत की देवभूमि कहा जाता है. इस देवभूमि पर हिंदुओं के कई तीर्थ स्थल भी हैं. लेकिन इसी देवभूमि में एक गांव ऐसा भी है जहां आज भी हनुमान जी की पूजा के साथ ही साथ लाल रंग भी पूरी तरह से प्रतिबंधित है.
जानें क्या है पौराणिक कथाउत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ से तकरीबन 50 किलोमीटर की दूरी पर जोशीमठ नीति मार्ग पर एक गांव द्रोणगिरी है. इस गांव में ही द्रोणागिरी पर्वत है. इस पर्वत का इतिहास रामायण काल से जुड़ा हुआ है. ऐसा माना जाता है कि जब प्रभु श्रीराम और रावण का युद्ध चल रहा था तभी रावण के पुत्र मेघनाथ के दिव्यास्त्र से लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे. तब लक्ष्मण की मूर्छा को ख़त्म करने के लिए संजीवनी बूटी की जरूरत थी. हनुमान जी इसी द्रोणागिरी पर्वत पर संजीवनी बूटी लेने के लिए आए थे. इस गांव के लोग द्रोणागिरी पर्वत को देवता मानते हैं. गांव वालों का कहना है कि जिस समय हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने यहां आए थे उस समय पहाड़ देवता साधना कर रहे थे. हनुमान जी ने संजीवनी बूटी के लिए न तो पहाड़ देवता से अनुमति मांगी थी और न ही पहाड़ देवता का इंतजार किया था.



इतना ही नहीं जब हनुमान जी संजीवनी बूटी को पहचानने में असफल हो गए थे तो हनुमान जी ने पर्वत को ही उखाड़ लिया था. पर्वत के उखाड़े जाने के बारे में गांव वाले कहते हैं कि हनुमान जी ने द्रोणागिरी पर्वत ले जाते समय देवता की दाईं भुजा उखाड़ दिया था. द्रोणागिरी पर्वत को देखने पर आज भी यही आभास होता है कि जैसे पर्वत की दाहिनी भुजा उखाड़कर खंडित कर दिया गया हो.


हनुमान जी के इसी कार्य की वजह से द्रोणगिरी गांव के लोग त्रेता युग से ही उनकी पूजा नहीं करते हैं. गांव में लाल रंग का झंडा इसलिए प्रतिबंधित किया गया है कि ऐसी मान्यता है कि आज भी पर्वत से लाल रंग का रक्त बह रहा है. यही वह कारण है कि द्रोणगिरी गांव के लोग आज भी हनुमान जी की न तो पूजा करते हैं और न ही गांव के लोग लाल रंग का झंडा लगाते हैं.


 


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