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पाकिस्तानी के इस्लाबाद में पिछले सप्ताह श्रीकृष्ण मंदिर के निर्माण पर रोक लगा दी गई थी


इस्लामाबाद. पाकिस्तानी के इस्लाबाद में पिछले सप्ताह श्रीकृष्ण मंदिर के निर्माण पर रोक लगा दी गई थी. इसके बाद इस्लामाबाद के सैदपुर गांव में स्थित राम मंदिर में हिंदू श्रद्धालुओं के पूजा-अर्चना करने पर रोक लगा दी गई है. इस राम मंदिर की स्थापना 16वीं सदी में किया गया था. यह हिंदुओं का धर्मस्थल है. यह हिंदू श्रद्धालुओं का पर्यटन स्थल रहा है. इस रोक से यह जाहिर हो रहा है कि पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता  का स्पेस बहुत तेजी से कम हो रहा है.
इस्लामाबाद में 3,000​ हिंदू आबादी रहती है
दरअसल बीते जून महीने में पाकिस्तान सरकार ने इस्लामाबाद में कृष्ण मंदिर बनाने की मंजूरी दी थी. गौरतलब है कि यह मंदिर इस्लामाबाद का पहला हिंदू मंदिर होता. राजधानी में करीब 3,000​ हिंदू आबादी रहती है इसके बावजूद वहां एक भी हिंदू मंदिर नहीं है. हालांकि कट्टरपंथियों ने इस मंदिर की बन रही दीवार को ढहा दी. पाकिस्तान सरकार को 20 हजार वर्ग फुट पर बन रहे मंदिर के निर्माण पर रोक लगाना पड़ा.


पाकिस्तान में 428 मंदिर थे, अब 20 रह गए
ऑल पाकिस्तान हिंदू राइट्स मूवमेंट के एक सर्वे में सामने आया था कि 1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान में 428 मंदिर थे लेकिन, 1990 के दशके के बाद इनमें से 408 मंदिरों में खिलौने की दुकानें, रेस्टोरेंट, होटल्स, दफ्तर, सरकारी स्कूल या मदरसे खुल गए हैं.
पाकिस्तान सरकार ने मंदिर बनाने के लिए 10 करोड़ रुपये दिए
पाकिस्तान की इमरान खान सरकार ने सौहार्द का प्रदर्शन करते हुए कृष्ण मंदिर के लिए 10 करोड़ रुपये भी दिए लेकिन इसके बाद धार्मिक और राजनीतिक संगठनों ने इस निर्माण का विरोध करना शुरू कर दिया. जामिया अश​रफिया मदरसे की ओर से शरिया कानून का हवाला देते हुए यह कहा गया कि गैर—मुस्लिमों के लिए प्रार्थना के लिए नई जगह पर निर्माण की इजाजत नहीं दी जा सकती ​है. शरिया कानून के अनुसार जो गैर-मुस्लिम ​प्रार्थना स्थल धवस्त किए जा चुके हैं, उनके पुर्ननिर्माण की इजाजत नहीं दी जा सकती है. इस्ला​मिक स्टेट में ऐसा किया जाना पाप है.


पाकिस्तान के पंजाब विधानसभा के स्पीकर चौधरी परवेज इलाही ने कहा कि हिंंदु, सिख और इसाईयों की धर्मस्थल पर केवल मरम्मत ​की इजाजत दी जा सकती है. नए मंदिर, गुरुद्वारे या गिरिजा घरों के निर्माण की इजाजत देना इस्लाम की आत्मा के खिलाफ है.


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