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एक अनुमान के मुताबिक देश से हर साल औसतन 1000 प्राचीन मूर्तियां और कलाकृतियां चोरी की जाती हैं और तस्करी से विदेशों में चली जाती हैं


राजस्थान से साल 1998 में चोरी हुई और तस्करी के जरिए ब्रिटेन पहुंची शिव भगवान की प्रतिमा भारत लौटने वाली है. बीते 15 सालों से ये मूर्ति यहां से वहां होते हुए आखिरकर लंदन की इंडियन एंबेसी तक पहुंच चुकी थी. यहीं से उसकी वापसी की तैयारी हो रही है. वैसे ये पहला मौका नहीं. भारत की प्राचीन मूर्तियों की लगातार चोरी होती रहती है. अब तक बहुत सी ऐसी कलाकृतियां अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और जर्मनी से देश में वापस लाई गई हैं.


लगातार हो रही तस्करी


एक अनुमान के मुताबिक देश से हर साल औसतन 1000 प्राचीन मूर्तियां और कलाकृतियां चोरी की जाती हैं और तस्करी से विदेशों में चली जाती हैं. इनमें से कई बहुत ज्यादा भारी और मूल्यवान होती हैं. तांबे और कांसे या मिश्रित धातुओं से बनी कई मूर्तियां 15 से 16 टन तक की होती हैंइस बारे में विस्तार से बताया गया है. इस बारे में सिंगापुर में भारतीय मूल के व्यापारी और शिपिंग एग्जीक्यूटिव एस विजय कुमार कहते हैं कि हर दशक में कम से कम 10 हजार बहुमूल्य कृतियां भारत से तस्करी की जाती हैं. विजय भारतीय मूर्तियों की चोरी को लगभग दो दशकों से देख रहे हैं. इस बारे में साल 2018 में एक किताब भी आई है, द आइडल थीफ यानी मूर्ति चोर. किताब में देश के मूर्तियों की तस्करी कैसे होती है, इस बारे में बताया गया है.


इस तरह से होती है चोरी


अधिकतर मूर्तियां समुद्र के रास्ते से स्मगल होती हैं. भारी मूर्तियों को तब कस्टम से बचाते हुए लाया जाता है और कहीं पकड़ाई में आ भी गए तो उन्हें पीतल की बगीचे में सजाने वाली मूर्तियां बताया जाता है. इसके लिए भारी रिश्वत भी दी जाती है. समुद्री रास्ते से एक देश से दूसरे देश पहुंचने के बाद काला बाजार में उन्हें भारी कीमत पर बेचा जाता है. जहां से तस्करों का ही सफेदपोश गिरोह मूर्तियों को विदेशी रईसों को और ऊंची कीमत पर बेच देता है. इसके बाद भी ये कीमत मूर्ति की असल कीमत से काफी कम होती है.


तस्करी की हुई मूर्तियों का कोई लीगल डॉक्युमेंट नहीं होता है कि वो किस धातु से बनी हैं. कहां से हैं. किस काल की हैं या किस कलाकार की हैं. ये सारी जानकारी सिर्फ तस्कर के पास होती हैं, जो जानकर निजी संग्रहकर्ताओं से छिपाई जाती हैं ताकि वे बेझिझक मूर्ति खरीद सकें.


क्या हैं तस्करी रोकने के नियम 


वैसे देश में एंटीक चीजों की चोरी को रोकने के लिए The Antiquities and Art Treasures Act, 1972 बना हुआ है. इसके तहत धातु से बनी मूर्तियां, पत्थरों से बनी मूर्तियां या दूसरे तरह के आर्ट वर्क, पेंटिंग्स, आभूषण, कागजों पर उकेरी कलाकृतियां, लकड़ी पर नक्काशी, कपड़े पर कलाकृति के साथ-साथ सैकड़ों साल पुरानी पांडुलिपियों को तस्करी से बचाना भी शामिल है. एंटीक एक्ट ये भी कहता है कि इस तरह की प्राचीन कलाकृति अगर किसी निजी संग्रहकर्ता के पास हो तो उसे आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया में इसे रजिस्टर करना होगा. और अगर देश के भीतर भी किसी वजह से कलाकृति किसी दूसरे को बेची जाए तो उसे लाइसेंस लेना होगा. अगर कोई इसका पालन न करे तो उसे सजा का भी प्रवधान है. हालांकि कई वजहों से इस एक्ट का सही ढंग से पालन नहीं हो पा रहा है. यही वजह है कि हर साल अरबों-खरबों कीमत की भारतीय कलाकृतियों दूसरे देशों में जा रही हैं.


नहीं है सही डाटाबेस


भारत में अपने ही आर्टवर्क का सही तरीके से लेखा-जोखा नहीं रखा गया है. National Mission for Monument and Antiquities के मुताबिक देश में कम से कम 7 मिलियन प्राचीन चीजें हैं. लेकिन इनमें से केवल 1.3 मिलियन एंटीक चीजों का ही डॉक्युमेंटेशन हो सका है. इसकी एक वजह विभिन्न सरकारों को एंटीक चीजों को खास महत्व न देना भी है. इसी वजह से कई बार कमेटी बनने के बाद भी कड़े नियम नहीं हो सके और बने भी तो उनका पालन नहीं कराया जा सका. समुद्री सीमाओं पर कड़ी निगरानी न होना भी तस्करी को बढ़ा चुका है.


दुनिया का सबसे कुख्यात तस्कर भारत से 


द डिप्लोमेट की एक रिपोर्ट के अनुसार ढीले नियमों के कारण ही दुनिया के सबसे कुख्यात तस्करों में से एक भारत का सुभाष कपूर है. मैनहट्टन में उसने अपनी आर्ट गैलरी के जरिए भारत के बेशकीमती कलाकृतियों विदेशी रईसों को बेचीं. इनमें से एक आर्ट वर्क 900 साल पुरानी नटराज की मूर्ति थी, जिसकी कीमती 5 मिलियन डॉलर से ज्यादा थी. ये मूर्ति उसने ऑस्ट्रेलिया को बेची. इसी तरह से शिव की एक मूर्ति, जो 1100 साल पुरानी थी, उसे न्यू साउथ वेल्स में बेचा गया. अमेरिकी अधिकारियों ने जब कपूर को पकड़ा, तो उसके पास 107 मिलियन डॉलर से ज्यादा की भारतीय कलाकृतियां थीं. उसे अमेरिकन हिस्ट्री का सबसे बड़ा तस्कर माना गया.


ट्रैकिंग के बाद भी लौटना आसान नहीं


वैसे दूसरे देशों में गई कई कलाकृतियां इंटरनेशनल संधि के तहत लौट भी आती हैं. चूंकि भारत 1970 यूनेस्को ट्रीटी में शामिल है, इसलिए देश अगर अपने यहां भारत की कोई प्राचीन कृति अपने यहां पाते हैं, तो वे उसे लौटा सकते हैं. हालांकि एक बार अगर आर्ट वर्क देश से बाहर निकल जाए तो उसे पाना आसान नहीं होता. बहुत बार ये निजी संग्रहकर्ता के पास पहुंच जाते हैं, जहां ये ट्रैक भी नहीं हो पाते.


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