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मध्य प्रदेश के 232 आदिवासी परिवार जिन्होंने अपने किचन गार्डन की बदौलत 425 से ज्यादा पड़ोसियों को इस संकट काल में सहारा दिया


खेत से सब्जी तोड़ने के बाद पड़ोसी को देती आदिवासी महिला

भोपाल. देश-विदेश में 5 लाख से ज्यादा लोगों को अपनी गिरफ्त में लेने वाला कोरोना वायरस और उसकी रोकथाम के लिए लागू किए गए लॉकडाउन ने भारत में केंद्र और कई राज्यों की सरकारों को चिंता में डाल दिया था. एक तरफ घरों में कैद रहने के निर्देश थे, वहीं दूसरी ओर गरीब और जरूरतमंदों को भूखा न रखने की चुनौती थी. लॉकडाउन के दौरान सरकार और गैर-सरकारी संस्थाओं की तरफ से सड़क से लेकर शहरों और गांवों तक जरूरतमंदों को भोजन कराने की तस्वीरें मीडिया की सुर्खियां बनीं, तो सोशल मीडिया पर इन्हें ट्रेंडिंग कहा गया. लेकिन तस्वीरों के इन फ्रेम्स में मध्य प्रदेश के 232 आदिवासी परिवार  की तस्वीर नहीं आ पाई, जिन्होंने अपने किचन गार्डन की बदौलत 425 से ज्यादा पड़ोसियों को इस संकट काल में सहारा दिया.
हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के पन्ना, रीवा, सतना और उमरिया जैसे 4 जिलों के आदिवासी परिवारों की. इन आदिवासी परिवारों ने अपने किचन गार्डन, जिसे ये स्थानीय स्तर पर पोषण वाटिका कहते हैं, से बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अन्य जरूरतमंदों को पूरे लॉकडाउन अवधि के दौरान सब्जी और फल बांटे, ताकि महामारी से लड़ते लोगों को खाने, या कहें पोषण का संकट न हो. किचन गार्डन का यह कॉन्सेप्ट दरअसल इन जिलों में काम कर रही सामाजिक संस्था विकास संवाद ने लाया है. आदिवासियों के 232 परिवारों ने 1100 किचन गार्डन्स में उपजी सब्जियां और फल अपने पड़ोसियों में बांटी. अब तक ये परिवार 37 क्विंटल से ज्यादा सब्जी बांट चुके हैं. इनके इस काम से लॉकडाउन के दौरान 217 बच्चों, 140 गर्भवती और 68 बुजुर्गों को राहत मिली. आइए पढ़ें इन परिवारों की कुछ कहानियां


पहली कहानी- समाज की मदद को आगे आए
सतना जिले के डाड़िन गांव की रज्जी बाई की दो बेटियां कुपोषण का शिकार हुईं तो उन्होंने 2016 में अपनी सब्जी बाड़ी लगाई. कुछ महीनों की मेहनत से ही उन्होंने इसे आजीविका का साधन भी बना लिया. लॉकडाउन के बीच जब बाजार बंद हो गए तो उन्होंने पड़ोस के घरों में अपने किचन गार्डन की फल-सब्जी साझा करना शुरू कर दिया. डाड़िन बाई ने कहा कि हमें पड़ोसियों का हाल पता है. महामारी के समय हम एक-दूसरे की मदद नहीं करेंगे, तो कौन करेगा. कुछ ऐसी ही कहानी मुड़खोहा गांव के राजभान गोंड की भी है, जिनके किचन गार्डन में फल-सब्जी के 280 पौधे हैं. वे पिछले 25 मार्च से ही अपने पड़ोस के घरों के साथ यह उत्पाद साझा कर रहे हैं. सोशल डिस्टेंसिंग के प्रति सचेत राजभान कहते हैं- बीमारी का डर है, लेकिन हम अपने ही समाज की मदद नहीं करेंगे तो कौन करेगा.
दूसरी कहानी- सीएम ने की सराहना
सतना जिले के देवलहा गांव की ललता 4 साल से किचन गार्डन चला रही हैं. यह घर में खपत के साथ-साथ उनकी आजीविका का भी साधन है. लॉकडाउन के दौरान ललता पड़ोस के 11 परिवारों की मदद कर रही हैं. इसी जिले के कैल्होरा की कृष्णा मवासी के काम की तारीफ तो खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कर चुके हैं. कृष्णा के किचन गार्डन और पड़ोसियों की सहायता करने की मुहिम जब सोशल मीडिया पर शेयर हुई, तो पहले सीएम ने तारीफ की. बाद में सांसद गणेश सिंह साव गांव पहुंचे और 15 लाख के विकास कार्यों की शुरुआत कराई.
तीसरी कहानी-14 गांवों में सब्जी भेजने का भार उठाया
लॉकडाउन के दौरान पन्ना जिले के विक्रमपुर गांव की कस्तूरी के घर में नमक-रोटी के अलावा कुछ नहीं बचा था. ऐसे में उनकी मदद को आगे आईं तुलसा बाई, जो पिछले डेढ़ महीने से कस्तूरी के अलावा गांव के अन्य घरों में फल-सब्जियां भेज रही हैं. तुलसा बाई ने बताया कि उन्होंने अभी तक 14 गांवों के 41 परिवारों के बीच 537 किलो सब्जियां बांटी है. इसी तरह पटी गांव की विट्टी बाई ने गांव के दिहाड़ी मजदूरों की हालत देख तय कर लिया कि जब तक लॉकडाउन है, तब तक वह जरूरतमंदों के घर फल-सब्जी भेजती रहेंगी


चौथी कहानी- सब्जी साझा करना बनी ड्यूटी
रीवा जिले की नीरू कोल की कहानी भी ऐसी ही है. वह लॉकडाउन के दौरान 13 परिवारों के बीच फल-सब्जियां बांट रही हैं. नीरू कहती हैं कि आज जब पूरी धरती पर ही संकट है. धन-संपदा का मोल नहीं है, तो ऐसे में एक-दूसरे की मदद हमारी जिम्मेदारी बन जाती है.
पांचवीं कहानी- अपनों के काम आना बड़ी बात
उमरिया जिले की मनमानी पंचायत की बाबी बाई को कोरोना वायरस और लॉकडाउन की गंभीरता का अंदाजा है. उन्होंने कहा कि आज जब लोगों के पास काम-धंधा नहीं है, घर में अभाव है. वहीं हमारे पास अपनी बाड़ी की सब्जी है, तो मदद करना हमारा फर्ज है. संकट के समय अपनों के काम न आए तो हमारे रहने का क्या मतलब. इसी जिले के मगरघरा गांव की केसरी बाई कहती हैं कि लॉकडाउन के बाद जब सब्जी बांटने का निर्णय लिया, तो घर का ख्याल आया था. लेकिन पड़ोसियों की परेशानी हम नहीं सुलझाएंगे तो कौन करेगा. केसरी बाई अब तक अपने पड़ोस में लगभग 1 क्विंटल फल-सब्जी बांट चुकी हैं. इनकी ये मुहिम जारी है.


 


 


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