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देश के 62 किसान संगठनों की संस्था ने मोदी सरकार के इस कदम का स्वागत किया है जानिए क्या है पूरा मामला


नई दिल्ली. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण  ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज के तहत तीसरे चरण ब्योरा देते हुए कृषि क्षेत्र में बडे रिफार्म का एलान किया. एसेंशियल कमोडिटी एक्ट  में संशोधन करने का एलान किया है. इस एक्‍ट से अनाज, खाद्य तेल, तिलहन, दालें, प्याज और आलू सहित कृषि खाद्य सामग्री को बाहर किया जाएगा. दरअसल, सन् 1955 में बने इस कानून की वजह से किसानों को अपनी उपज एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी  (APMC) को बेचना पड़ता है. वो अपने राज्य के नजदीकी मंडी में ही उपज बेचने के लिए बाध्य थे.
लेकिन, अब किसानों को इस बात की आजादी होगी कि वो अपनी उपज मंडी या अपने राज्य से बाहर भी ले जाकर बेच सकेगा. वो सिर्फ अपनी नजदीकी मंडी के तय लाइसेंसी आढ़ती या व्यापारी को इसे बेचने के लिए विवश नहीं होगा. इससे मार्केट में स्पर्धा आएगी और उन्हें उपज की अच्छी कीमत मिल सकेगी. जिससे उनकी आय में इजाफा होगा.
अब खत्म होगा स्थानीय मंडी और राज्य का बैरियर
देश के 62 किसान संगठनों की संस्था राष्ट्रीय किसान महासंघ के संस्थापक सदस्य विनोद आनंद ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है. उनका कहना है कि यह बहुत साहसी कदम है. इससे कृषि क्षेत्र में बड़ा बदलाव आएगा. क्योंकि इसमें मंडी और स्टेट का बैरियर खत्म कर दिया गया है. एपीएमसी एक्ट में जिस बदलाव की जरूरत थी उसके लिए एसेंशियल कमोडिटी एक्ट में संशोधन बहुत जरूरी था.



आनंद कहते हैं कि इस एक्ट में संशोधन के बाद किसान को उपज का इसलिए भी बेहतर मूल्य मिल सकेगा क्योंकि कृषि क्षेत्र में बड़े निवेशक आएंगे. एसेंशियल कमोडिटी एक्ट 65 साल पहले 1955 में बनाया गया था. यह तब के समय की मांग थी क्योंकि हमारे यहां अनाज मांग के मुताबिक काफी कम था. मांग ज्यादा हो और उत्पादन कम तब तो इसे लगाने के पीछे तर्क था लेकिन आज देश में रिकॉर्ड अनाज उत्पादन हो रहा है. हम एक्सपोर्ट कर रहे हैं तो इसकी जरूरत नहीं थी. यह जमाखोरी रोकने के लिए बनाया जरूर गया था लेकिन इसकी आड़ में किसानों का शोषण जारी था.
हालांकि, सरकार समय-समय पर इसकी समीक्षा करती रहेगी. जरूरत पड़ने पर नियमों को सख्‍त किया जा सकता है.
 क्‍या है एसेंशियल कमोडिटी एक्ट?
इस एक्‍ट के तहत जो भी चीजें आती हैं केंद्र सरकार उनकी बिक्री, दाम, आपूर्ति और वितरण को कंट्रोल करती है. उसका अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) तय कर देती है. कुछ वस्तुएं ऐसी होती हैं जिसके बिना जीवन व्यतीत करना मुश्किल होता है. ऐसी चीजों को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट में शामिल किया जाता है.
केंद्र सरकार को जब भी यह पता चल जाए कि एक तय वस्‍तु की आवक मार्केट में मांग के मुताबिक काफी कम है और इसकी कीमत लगातार बढ़ रही है तो वो एक निश्चित समय के लिए एक्ट को उस पर लागू कर देती है. उसकी स्टॉक सीमा तय कर देती है. जो भी बिक्रेता इस वस्तु को बेचता है, चाहे वह थोक व्यापारी हो, खुदरा विक्रेता या फिर आयातक हो, सभी को एक निश्चित मात्रा से ज्यादा स्टॉक करने से रोका जाता है ताकि कालाबाजारी न हो और दाम ऊपर ना चढ़ें.
लेकिन सरकार ने शुक्रवार को जिन वस्तुओं को इससे बाहर करने का एलान किया है, देश में  उनकी कमी नहीं है. इसके बावजूद उन पर इस कानून को लागू होने के कारण किसानों को उचित दाम नहीं मिल पाता था.



इस एक्ट में अब तक शामिल चीजें
आवश्यक घोषित किए गए वस्तुओं की लिस्ट में आर्थिक परिस्थितियों, मौसम परिवर्तनों, प्राकृतिक आपदा, आदि के समय के अनुसार परिवर्तन किया जा सकता है. फिलहाल, इसमें पेट्रोलियम और उससे जुड़े उत्पाद, खाद्य सामग्री, खाद्य तेल, बीज, दालें, जूट, उर्वरक आदि इसमें शामिल हैं. हाल ही में कोरोना संकट को देखते हुए हैंड सैनिटाइजर और मास्क भी इसी एक्ट के तहत लाया गया है.
यानी केंद्र सरकार को जब भी जरूरत पड़ती है नई वस्तुओं को इसमें शामिल कर सकता है. हालात में सुधार होते ही उन्हें लिस्ट से हटाया जा सकता है. इस एक्ट का उल्लंघन करने वाले को 7 वर्ष के कारावास अथवा जुर्माने अथवा दोनों से दंडित किया जा सकता है.


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