Header Ads Widget

Responsive Advertisement

2020 की सदी में क्लाईमेट चेंज का मुद्दा छाया रहेगा. ये कहना था रायसीना डायलॉग 2020 में भाग लेने पहुंचे 7 में 4 प्रमुख नेताओं का

ऐसे समय में जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र डिजिटल युग की तरफ़ आगे बढ़ रहा है तब, ये मुमकिन है कि हम ऐसे कई तकनीक़ आधारित विवाद अपने सामने घटते देखेंगे जो इस समय चीन और अमेरिका के बीच हो रहा है.



 2020 की सदी में क्लाईमेट चेंज का मुद्दा छाया रहेगा. ये कहना था रायसीना डायलॉग 2020 में भाग लेने पहुंचे 7 में 4 प्रमुख नेताओं का, जिनके मुताबिक इसके अलावा जो दो और अलग मुद्दे आने वाली दशक में छाये रहेंगे वो होंगे टेक्नोलॉजी और ग्लोबल सिक्योरिटी यानी वैश्विक सुरक्षा.


ये बातें उस कार्यक्रम का हिस्सा था, जिसमें दुनिया के 07 प्रमुख देशों के पूर्व राष्ट्रप्रमुखों ने भाग लिया था. ये 7 लीडर्स थे अफ़गानिस्तान के हामिद करज़ई, न्यूज़ीलैंड के हेलेन क्लार्क, कनाडा के स्टीफ़न हार्पर, स्वीडन के कार्ल बिल्ड्ट, डेनमार्क के एंड्रियास फॉग रासम्यूसन, भूटान शेरिंग टोबगे और कोरिया गणराज्य के हान सियुंग सु. इस चर्चा का संचालन कर रहे थे ओआरएफ़ के प्रेसीडेंट समीर सरन.


रैपिड सवाल-जवाब के तर्ज पर हो रहे इस पैनल डिस्कशन से मुख्य़ तौर पर चार बातें सामने आयीं, जिसको लेकर आने वाले समय में राष्ट्रों और राष्ट्रध्यक्षों को गंभीर होना पड़ेगा. ये चारों विषय हैं, क्लाईमेट चेंज, टेक्नोलॉजी, लोकतंत्र और मल्टी-लैट्रलिज़्म यानी बहुपक्षीयवाद जो 2020 की रूपरेखा तय करेगा.


बातचीत के दौरान हेलेन क्लार्क ने जहां मध्य एशिया में शांति स्थापित करने के लिए ईरान की भूमिका पर ज़ोर दिया तो वहीं हामिद करज़ई ने इस इलाके में शांति स्थापित करने के लिए अफ़गानिस्तान को प्रतिबद्ध बताया. करज़ई ने इसी क्रम में इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पश्चिमी देशों को कैसे एक बार फिर से अपनी प्राथमिकताओं और अपने नज़रिये में बदलाव लाना होगा. इस पैनल में बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया गया कि डिजिटल युग में किस तरह से नई और उभरती ताक़तों की भूमिका लगातार बढ़ रही है, जिसमें भारत का ख़ासतौर पर नाम लेते हुए कहा गया कि ऐसे समय में जब दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र डिजिटल युग की तरफ़ आगे बढ़ रहा है तब, ये मुमकिन है कि हम ऐसे कई तकनीक़ आधारित विवादों को अपने सामने घटते देखेंगे जो इस समय चीन और अमेरिका के बीच हो रहा है.


पैनल में शामिल मेहमानों ने मिडिल ईस्ट में नाटो के घटते असर पर अपना रुख़ साफ़ करते हुए इस बात से इंकार किया कि नाटो का असर कम हो रहा है, लेकिन ये ज़रूर कहा कि नाटो के पास पैसों और संसाधन की काफ़ी कमी है जिसका असर उसके काम-काज में हो रहा है. इस पैनल ने दीर्घकालिकता और क्लाईमेट चेंज की समस्या से लड़ने के महत्व पर भी ज़ोर दिया. भूटान से आए तोगबे जिनका अपने देश को कार्बन नेगेटिव बनाने में अहम् योगदान है, उन्होंने क्लाईमेट चेंज को एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की ज़रूरत पर बल दिया. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कामकाज पर नाराज़गी जतायी और वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे ग्लोबल इको-सिस्टम को बचाने की दिशा में पहल करें.


 


रायसीना डायलॉग के शुरुआती सत्र के साथ ही तीन दिनों के इस विचार प्रेरक कार्यक्रम की शुरुआत हुई, और आज के पैनल का अंत इस बात पर हुआ कि हमें एक बेहतर दुनिया के लिए ज़्यादा से ज़्यादा से लोकतांत्रिक देशों, बहुपक्षीयवाद, क्लाईमेट और टेक्नोलॉजी केंद्रित नज़रिये की ज़रुरत है ताकि हम कई ज़रूरी मुद्दों पर एक वैश्विक सहमति बना सके. और यही वो चार मुख़्य बिंदु है, जिसपर रायसीना कॉन्फ्रेंस आधारित है और जो इस डायलॉग को भविष्य में और प्रासंगिक और सफल बनाएगा.


 


भू-राजनीति और भू-अर्थनीति से जुड़ा इस अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के इस पाँचवे संस्करण की शुरुआत 14 जनवरी 2020 को राजनीति दिल्ली में हो गयी. तीन दिनों तक चलने वाला ये क्रॉन्फ्रेंस इस बार दिल्ली के ताज पैलेस होटल में आयोजित हो रहा है. इस डायलॉग का आयोजन भारत का विदेश मंत्रालय और ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन साथ मिलकर कर रहा है, जिसमें 105 देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं और 600 वक्ता भाषण देंगे. इन मेहमानों को सुनने के लिए देशभर से दो हज़ार के आसपास प्रतिभागी इकट्ठा हुए हैं. ये प्रतिभागी अगले तीन दिनों तक पूरी दुनिया से आए इन लीडर्स के साथ हो रही चर्चा को सुनेंगे और उसमें हिस्सा लेंगे. डायलॉग में पूरी दुनिया से आए कुछ महत्वपूर्ण नेता, लीडर्स और प्रभावशाली व्यक्तित्वों की भागीदारी होगी.


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ