Header Ads Widget

Responsive Advertisement

दो दोस्तों की पहल से अब इंदौर के 40 डॉग्स नहीं रहते भूखे


इंदौर। तीन साल पहले की घटना है। ऑफिस से घर जा रही थी। रास्ते में देखा एक डॉगी की हालत बहुत खराब है। उससे हिला-डुला भी नहीं जा रहा है। पास जाकर देखा तो उसके बेडसोल हो गए थे। मैंने टिफिन में बचा खाना उसे दिया और जान- पहचान के एक डॉक्टर की मदद से उसे दवा खिलाने की कोशिश की। दुर्भाग्यवश मैं तमाम कोशिशों के बावजूद उसे बचा नहीं सकी। लेकिन मन ही मन ये संकल्प ले लिया कि अब अपने आसपास के किसी मूक जानवर को इस तरह मरने नहीं दूंगी। अगले दिन सुबह थोड़ा जल्दी उठी और अपने टिफिन के साथ कुछ रोटियां एक्सट्रा बनाईं और रास्ते में मिलने वाले हर श्वान को देती गई। पहले दिन पांच-छह श्वान ही मिले, लेकिन महीने भर के भीतर ही इनकी तादाद 40 पार पहुंच गई, तब से ये मेरी दिनचर्या का हिस्सा बन गया।


अब जिस दिन ऑफिस की छुट्टी होती है, उस दिन भी मैं श्वानों को खाना खिलाने जरूर जाती हूं। ये हैं ओल्ड पलासिया निवासी 41 वर्षीया चेताली खरे। जो करीब तीन साल से हर रोज तीन दर्जन से ज्यादा श्वानों की परवरिश मां की तरह कर रही हैं। एक क्लीनिक में बतौर मैनेजर काम कर रहीं चेताली के पति अविनाश खरे का 2015 में निधन हो गया था। बच्चे भी नहीं हैं। इसलिए लोग अक्सर उनसे कहते हैं कि जब तक हाथ-पांव चल रहे हैं, तब तक फ्यूचर के लिए रुपए जमा कर लो, मगर वो कहती हैं कि एक इंसान के फ्यूचर के लिए मैं 40 जिंदगियां दांव पर नहीं लगा सकती। क्योंकि स्वच्छता का चौका लगाने की तैयारी कर रहे हमारे शहर इंदौर में अब स्ट्रीट डॉग्स के लिए भोजन की बहुत कमी हो गई है। ओल्ड पलासिया की मेरी बिल्डिंग के नीचे, श्रीनगर एनएक्स, बीमा नगर, श्रीनगर मेन और मेरे ऑफिस के नीचे की चार-पांच बिल्डिंग्स के श्वानों को इंतजार रहता है कि कोई उनका पेट भरने के लिए खाना ला रहा है। अगर मैं नहीं पहुंची तो वो भूखे रह जाएंगे और हो सकता है ऐसे में उग्र होकर वो आते-जाते किसी शख्स पर अटैक कर दें।


घट गया क्राइम रेट


मेरी इन कोशिशों में ओल्ड पलासिया में ही रहने वाली मेरी मित्र वंदना जैन भी बहुत मदद कर रही हैं। इन श्वानों को प्राकृतिक परिवेश में ही आजादी से रहने के लिए हमने तीन साल में करीब डेढ़ सौ पेड़ भी लगाए हैं। वंदना बताती हैं कि चेताली सर्दी, गर्मी हो या बरसात, साल के 365 दिन अपनी जिम्मेदारी को बखूबी अंजाम देती हैं। हम लोगों ने मिलकर क्षेत्र के लगभग सभी श्वानों की नसबंदी करा दी है, ताकि देखभाल में आसानी हो और उनकी जनसंख्या भी न बढ़े। सबसे अच्छी बात तो ये है कि इन श्वानों की सक्रियता के चलते अब हमारे क्षेत्र का क्राइम रेट भी पहले से कम हो गया है।


35 लोग मिलकर रखें एक श्वान का खयाल


पहले हमने एक एरिया बनाया था, जहां श्वानों के लिए खाना रखा जाता था, लेकिन उसमें दिक्कत ये थी कि डॉमिनेटिंग डॉग तो खाना खा लेता था, लेकिन कमजोर श्वान भूखे रह जाते थे। इसलिए हमने तय किया है कि रोज हर डॉग को अलग-अलग खाना दिया जाए। हमारे शहर की आबादी करीब 35 लाख है और श्वानों की तादाद लगभग एक लाख होगी। ऐसे में अगर 35 लोग मिलकर भी एक श्वान का खयाल रखने लगें, उसे खाना देने, नसबंदी कराने और बीमार पड़ने पर डॉक्टर को कॉल करने की जिम्मेदारी ले लें तो हम लोग भी सुरक्षित रहेंगे और किसी डॉगी को भी भूखे नहीं मरना पड़ेगा। एक सीमेंट के बड़े गमले में अगर हम रोजाना उसमें पानी भर दें तो कोई श्वान प्यास से बेहाल होकर लोगों पर अटैक नहीं करेगा।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ