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सोशल मीडिया की लत और उन पर अनजान लोगों से दोस्ती के कारण कई बच्चे घर छोड़कर भाग रहे हैं


 सोशल मीडिया की लत और उन पर अनजान लोगों से दोस्ती के कारण कई बच्चे घर छोड़कर भाग रहे हैं। बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के पास लगातार ऐसे मामले पहुंच रहे हैं। बीते छह माह में सोशल मीडिया की लत के करीब एक दर्जन मामले सामने आए हैं। बच्चों की सोशल मीडिया की लत छुड़वाने के लिए समिति द्वारा उन्हें ऑफिस मैनेजमेंट और टास्क दिए जा रहे हैं। ऐसे बच्चों की मनोवैज्ञानिक से काउंसिलिंग कराकर उन्हें जीवन जीने की कला सिखाई जा रही है। इसके बाद अभिभावकों की काउंसिलिंग कर बच्चों को सौंपा जा रहा है। काउंसलर का मानना है कि ऐसे मामले अधिक इसलिए आ रहे हैं, क्योंकि अभिभावक बच्चों को समय नहीं दे पा रहे और बच्चे अपना ध्यान सोशल मीडिया पर दोस्ती में लगा रहे हैं।


चाइल्ड लाइन में रखकर दिया जाता है टास्क


 



समिति ऐसे मामलों में बच्चों को चाइल्ड लाइन या आश्रयगृह में रखकर करीब 10 से 15 दिन तक सोशल मीडिया की लत छुड़ाने के लिए ऑफिस मैनेजमेंट और सोशल कल्चर विकसित करने के लिए अलग-अलग टास्क देते हैं। कई बच्चों को चाइल्ड लाइन में रखकर टीम के साथ उन्हें अलग-अलग सामाजिक परिवेश के बारे में समझाया जाता है।


केस-1


 



बेंगलुरु से एक 15 वर्षीय बालिका सोशल मीडिया पर हुई दोस्ती के कारण युवक से मिलने फ्लाइट से भोपाल आ गई। जब समिति के पास मामला पहुंचा तो पता चला कि वह जिस युवक से मिलने पहुंची है, उसकी पहचान फेसबुक से हुई है। बालिका ने बताया कि उसके पिता बहुत रोक-टोक करते हैं, यहां तक कि पॉकेटमनी भी नहीं देते, जिससे वह कॉल सेंटर में काम करती है।


केस-2


पुणे से एक 14 वर्षीय बालक अपने घर से इसलिए भागा, क्योंकि सोशल मीडिया पर दोस्तों ने घर से भागने का चैलेंज किया था। उसके पिता दुबई में इंजीनियर हैं और मां उसे लेने आई थी। उन्होंने बताया कि बच्चा दिनभर मोबाइल पर गेम खेलता है या सोशल मीडिया पर चैटिंग करता है।


केस-3


होशंगाबाद से 11वीं की छात्रा भागकर सोशल मीडिया दोस्त से मिलने भोपाल पहुंच गई। बालिका ने काउंसिलिंग में बताया कि उसे इसी दोस्त के साथ रहना है, जबकि वह उसके बारे में कुछ भी नहीं जानती थी। उसकी काउंसिलिंग कर अभिभावकों को सौंपा गया।


इनका कहना है


ऐसे मामलों में बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों की भी काउंसिलिंग की जाती है। ऐसे बच्चों को आश्रयगृह और चाइल्ड लाइन में रखकर उन्हें कई प्रकार के व्यवहारिक ज्ञान और कॅरियर बनाने के लिए मनोवैज्ञानिक काउंसिलिंग कर रहे हैं। यह भी समझाया जाता है कि अभी आपकी उम्र खेलने और पढ़ने की है।


 


 


डॉ. कृपाशंकर चौबे, सदस्य, सीडब्ल्यूसी


बच्चों में यह समस्या इसलिए आ रही है, क्योंकि अभिभावक बच्चों को समय नहीं देते हैं। ऐसे में बच्चे अपने मन को कहीं और लगाने के लिए सोशल मीडिया या अन्य चीजों की ओर जा रहे हैं। बच्चों में गोल सेटिंग की कमी है। बच्चों को मोटिवेट करें।


 


 


-डॉ पूजा मेहता, काउंसलर, समिति


 


अभिभावकों को यह बताया जा रहा काउंसिलिंग में


- बच्चों को समय देना चाहिए और बात करनी चाहिए।


- अपने बच्चे की योग्यता व क्षमता पता होनी चाहिए।


- बच्चों पर प्रेशर न डालें और गोल सेटिंग कराएं।


- किसी अन्य बच्चों से उनकी तुलना ना करें।


- अभिभावक तनाव में ना रहें और बच्चों पर ना दिखाएं।


- बच्चों का आत्मविश्वास खोने ना दें।


- अभिभावक घर में मोबाइल का कम यूज करें।


- बच्चों को भावानात्मक जुड़ाव की जरूरत है।


- बच्चों को प्यार और समय दें।


 


 





 





 








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