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महिलाएं भी कर सकती है श्राद्ध, शास्त्रों में कही गई है यह बात


 पूर्वजों की स्मृति को बनाए रखने के लिए सोलह दिनों तक श्राद्धपक्ष का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इन दिनों में पितृ- पृथ्वीलोक पर आते हैं और अपने परिजनों से श्राद्ध और तर्पण की आशा रखते हैं। परिजन भी पितृों को तृप्त करने के लिए शास्त्रोक्त क्रियाकर्म करते हैं। पितृ अपने परिजनों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। धर्मशास्त्रों में श्राद्ध कैसे किया जाए इसकी क्रियाविधि बतलाई गई है साथ यह भी बताया गया है कि कौन श्राद्ध कर सकता है।


संतानहीन का श्राद्ध


 


'मनुस्मृति' और 'ब्रह्मवैवर्तपुराण' में कहा गया है कि दिवंगत पितृों के परिवार में या तो पुत्र हो, यदि पुत्र ना हो तो भतीजा, भांजा या शिष्य ही तिलांजलि और पिंडदान देने के पात्र होते हैं। संतानहीन होने की दशा में भाई, भतीजे, भांजे या चाचा-ताऊ के परिवार के पुरुष सदस्य पितृ पक्ष में श्रद्धापूर्वक पिंडदान, अन्नदान और वस्त्रदान करके विद्वान ब्राह्मणों से विधिपूर्वक श्राद्ध कराते हैं तो पितृों की आत्मा को मोक्ष मिलता है।


स्त्री और श्राद्ध का अधिकार


 


अक्सर यह बात भी उठाई जाती है कि क्या कोई महिला श्राद्ध कर सकती है या महिला को श्राद्ध का अधिकार है। 'धर्मसिन्धु' 'मनुस्मृति' और 'गरुड़पुराण' जैसे पौराणिक ग्रंथ महिलाओं को पिण्डदान करने का अधिकार देते हैं। एक अन्य मान्यता के अनुसार महिलाएँ यज्ञ अनुष्ठान और व्रत आदि तो रख सकती हैं, लेकिन श्राद्ध का अधिकार उनको नहीं है।


विधवा महिला यदि संतानहीन है तो अपने पति के नाम से श्राद्ध का संकल्प रखकर ब्राह्मण या पुरोहित परिवार के पुरुष सदस्य से ही पिंडदान आदि का कर्मकांड करवा सकती है। इसी तरह जिन परिवारों में सिर्फ लड़कियां होती है उनमें दामाद, नाती को श्राद्ध का अधिकार है। साधु-संतों का श्राद्ध शिष्यगण कर सकते हैं। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि परिवार का कौनसा सदस्य श्राद्धकर्म करने का अधिकार रखता है।


 


पुत्राभावे वधु कूर्यात भार्याभावे च सोदनः।


 


 


शिष्यो वा ब्राह्मणः सपिण्डो वा समाचरेत॥


 


 


ज्येष्ठस्य वा कनिष्ठस्य भ्रातृःपुत्रश्चः पौत्रके।


 


 


श्राध्यामात्रदिकम कार्य पु.त्रहीनेत खगः॥


अर्थात परिवार का बड़ा पुत्र या छोटे पुत्र के ना होने पर बहू, पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। इसमें ज्येष्ठ पुत्री या एकमात्र पुत्री भी शामिल है। अगर पत्नी भी जीवित न हो तो सगा भाई अथवा भतीजा, भानजा, नाती, पोता आदि कोई भी यह कर सकता है। इन सबके अभाव में शिष्य, मित्र, कोई भी रिश्तेदार अथवा कुल पुरोहित मृतक का श्राद्ध कर सकता है। इस प्रकार परिवार के पुरुष सदस्य के अभाव में कोई भी महिला सदस्य व्रत लेकर पितरों का श्राद्ध व तर्पण और तिलांजली देकर मोक्ष कामना कर सकती है।


 


सीता ने किया था दशरथ का पिण्डदान


वाल्मीकि रामायण में सीता द्वारा महाराज दशरथ के पिण्डदान का उल्लेख मिलता है। वनवास के समय भगवान राम, लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया पहुँचे। वहाँ श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री का प्रबंध करने के लिए राम और लक्ष्मण नगर की ओर गए। दोनों भाई सुबह से गए थे और दोपहर तक नहीं आ पाए थे। इधर पिंडदान का समय निकला जा रहा था और सीता जी उनका इंतजार कर रही थी। तभी दोपहर में महाराज दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की माँग की।


 


गया में फल्गु नदी के किनारे पर अकेली सीताजी बड़े असमंजस में पड़ गई। उन्होंने फल्गू नदी के साथ वट वृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाया और दिवंगत राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान कर दिया। कुछ समय पश्चात जब भगवान श्रीराम और लक्ष्मण वापस आए तो उन्होंने कहा कि समय निकल जाने की वजह से मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया।


ऐसे में श्रीराम ने सीता से पिण्डदान का सबूत मांगा और कहा कि बगैर सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है? इसके लिए राम ने सीता से सबूत माँगा। तब सीताजी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत केतकी के फूल, गाय और वट वृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म के साक्षी हैं। इतने में फल्गू नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से पलट गए। सिर्फ वट वृक्ष ने सही बात की गवाही दी। ऐसे में सीता ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।


सीताजी ने दिया था फल्गू नदी को श्राप


दशरथ ने सीता की प्रार्थना स्वीकार करते हुए घोषणा की कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया है। इस पर राम संतुष्ट हो हुए, लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीताजी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि फल्गू नदी, आज से तू केवल नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा। इस वजह से फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है। गाय को यह श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों की जूठन का भक्ष्ण करेगी और केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं समर्पित किया जाएगा।


वट वृक्ष को सीताजी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा और पतिव्रता स्त्री तेरी पूजा कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करेंगी। यही वजह है कि फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है।


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