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हिंदी दिवस का इतिहास पुराना है। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी के दोस्त 'नोनो' ने इसे जनमानस की भाषा कहा था


 हिंदी का विकास और उसके परिणाम के बारे में समझने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटाना जरूरी है। आखिर हमने हिंदी भाषा और लिपि की शुरुआत कैसे की? हजारों सालों के संग्रहण और रचनाओं के आधार पर लिपियों का विकास किया गया। इसी क्रम में ब्रह्मी, रोमन और देवनागरी लिपि का विस्तार होता चला गया। इसी क्रम में हिंदी का विकास देवनागरी लिपि से ही शुरू हुआ।


इसका साक्ष्य राजधानी के घड़ी चौक के पास स्थित महंत घासीदास संग्रहालय में लगे पत्थरों के माध्यम से समझाया गया है। पत्थर में एक-एक शब्द से 12 खड़ी और ककहरा की बातें दशाई गई हैं, जो लोगों को देवनागरी के प्रति प्रेरित कर रही हैं। यह बात इसलिए हो रही है कि 14 सितंबर को प्रति वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है।


 


इसलिए मनाया जाता है हिंदी दिवस


हिंदी दिवस का इतिहास पुराना है। वर्ष 1918 में महात्मा गांधी के दोस्त 'नोनो' ने इसे जनमानस की भाषा कहा था और इसे देश की राष्ट्रभाषा भी बनाने की बात कही गई थी, लेकिन आजादी के बाद ऐसा कुछ नहीं हो सका। सत्ता में आसीन लोगों और जाति-भाषा के नाम पर राजनीति करने वालों को जोड़ने के लिए इसे राष्ट्रभाषा के तोड़ पर घोषित कर दिया गया। इसकी शुरुआत 1949 से 1950 तक नियमित हिंदी का प्रसार-प्रसार किया गया। बब से नियमित हिंदी दिवस मनाया जा रहा है।


 


छठवीं सदी से लेकर 12वीं सदी के पत्थर से ली गई है भाषा


बात हो रही है 36 गढ़ों में शासन करने वाले छठवीं शताब्दी के शासक महाशिवगुप्त बालार्जुन की माता वासटा के समय मिले शिलालेख और पृथ्वीदेव जजल्लदेव प्रथम के समय यानी 12वीं के समय के शिलालेखों को देख हिंदी भाषा में उसके विकास को दिखाया गया है। इसमें अक्षरों के निर्माण और उनकी शब्दावली को भी दर्शाया गया है।


 


इस तरह से दिखाए गए हैं अक्षर


12 खड़ी के माध्यम से शिलालेख में किस तरह से अ, आ, इ, ई, उ, ऊ ... का विस्तार किया गया। वहीं दूसरी ओर ककहरा में क, ख, ग, घ... यानी 52 अक्षरों का पूरा विस्तार दिया गया। इसका फायदा ये होता है कि मौके पर संग्रहालय पहुंचने वाले दर्शक उक्त अक्षरों के माध्यम से शिलालेखों को आसानी से पढ़ सकते हैं। साथ ही उन शिलालेखों के इतिहास और उस समय की सभ्यता को आसानी से समझ जाते हैं।


 


- देवनागरी लिपि के विस्तार को शिलालेख के माध्यम से समझाया गया है, ताकि मौके पर संग्रहालय में पहुंचने वाले दर्शक उक्त समय की लेखनी से परिचित हो सके। इससे फायदा ये है कि लोगों को समझ आता है कि हिंदी के विकास में देवनागरी लिपि किस तरह से लिखी गई है


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