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ईरान तक पहुंचा गेहूं का 'अफ्रीकी गेरुआ', भारत के कृषि वैज्ञानिक निपटने को तैयार


 गेहूं की फसल पर अब अफ्रीकी काला गेस्र्आ रोग का खतरा मंडरा रहा है। दक्षिण अफ्रीका के युगांडा से पैदा हुआ यह रोग ईरान, मिस्र और यमन तक आ पहुंचा है। ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान के रास्ते इसके भारत में आने का खतरा हो सकता है, लेकिन भारतीय कृषि वैज्ञानिक इससे निपटने को तैयार हैं। यूजी-99 नाम के इस गेस्र्आ रोग से लड़ने के लिए उन्होंने गेहूं की नई प्रजातियां ईजाद करना शुरू कर दिया है।


हाल के सालों में देश के अनुसंधान केंद्रों में गेहूं की ऐसी प्रजातियां विकसित की गई हैं जो यूजी-99 से लड़ सकें और इस रोग का फसल पर असर न हो। भारतीय गेहूं अनुसंधान संस्थान करनाल की एक प्रयोगशाला शिमला में है। इसमें सीमा क्षेत्र के गेहूं के पौधों पर आने वाले रोगों का विश्लेषण किया जा रहा है। इसके अलावा मैक्सिको स्थित अंतरराष्ट्रीय गेहूं और मक्का अनुसंधान संस्थान भी इस पर काम कर रहा है


दरअसल, साउथ अफ्रीका का केन्या गेस्र्आ का हॉट स्पॉट है, इसलिए मैक्सिको अंतरराष्ट्रीय संस्थान ने केन्या में परीक्षण की व्यवस्था की है। इसके लिए केन्या एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट (कारी) बनाया गया है, जिसमें दुनियाभर के गेहूं उत्पादक देशों के गेहूं की प्रजातियों का परीक्षण किया जाता है।


हर साल हो रहा अध्ययनक्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र इंदौर के प्लांट पैथालॉजिस्ट डॉ. एएन मिश्रा के मुताबिक केन्या में दुनियाभर से गेहूं की करीब 30 हजार लाइन उगाई जाती हैं, जिसमें भारत से भी 300-400 लाइन लगाई जाती है। अनुसंधानकर्ता यूजी-99 की लगातार निगरानी कर रहे हैं। हर साल अध्ययन हो रहा है, लेकिन अब तक भारत में यह कहीं नजर नहीं आया है


हम न केवल सतर्क हैं, बल्कि हमने यूजी-99 से निपटने की तैयारी कर रखी है। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के प्रिंसिपल साइंटिस्ट और ब्रीडर डॉ. आरएस शुक्ला बताते हैं कि हम बहुत पहले से इस पर तैयारी कर रहे हैं। कुछ साल पहले भारतीय वैज्ञानिकों के समूह के साथ मैं भी वहां प्रशिक्षण के लिए गया था।


भारतीय गेहूं की प्रजातियों का भी वहां के वातावरण में टेस्ट किया जा रहा है कि उन पर यूजी-99 का असर तो नहीं हो रहा, लेकिन हमारी नई वैरायटी यूजी-99 से लड़ने की क्षमता रखती है


लोहे पर जंग लगने जैसा है गेस्र्आ


 


 



गेरुआ रोग फफूंद से उत्पन्न् होता है। यह पक्शिनिया नाम की फफंूद होती है, जिसके अलग-अलग रूप होते हैं। गेस्र्आ रोग से गेहूं के पौधे पर फफोले जैसे पड़ जाते हैं। जिस तरह लोहे पर जंग लग जाती है, उसी तरह गेहूं के पौधे लाल-भूरे रंग के हो जाते हैं। इससे गेहूं की बालियों तक पोषण नहीं पहुंच पाता। दाना सिकुड़ जाता है और विकसित नहीं हो पाता। इससे पैदावार कम होती है। गेहूं के विशेषज्ञों का मानना है कि देश के विभिन्न् राज्यों में जहां गेहूं की खेती होती है, वहां पुरानी प्रजातियों पर सामान्य गेस्र्आ आता रहता है, लेकिन अब तक यूजी-99 का असर भारत में कहीं देखने को नहीं मिला।


हवा और शरीर से चिपकर फैल सकते हैं गेस्र्आ के बीजाणु


 


 


गेस्र्आ एक तरह का फफूंद रोग है इसके कण हवा के साथ उड़कर एक जगह से दूसरी जगह पहुंचते हैं। किसी व्यक्ति के शरीर और कपड़ों पर भी गेस्र्आ के बीजाणु चिपककर एक से दूसरी जगह पहुंच सकते हैं, इसीलिए गेस्र्आ रोग पर काम करने वाली विशेष कृषि प्रयोगशालाओं में वैज्ञानिक और विशेषज्ञ दस्ताने, नकाब और विशेष ड्रेस पहनकर काम करते हैं। काम के बाद वे उन कपड़ों को वहीं उतारकर आते हैं जिससे कोई अपने साथ फफूंद लेकर न आ जाए। दुनिया के दूसरे देशों से केन्या स्थित प्रयोगशाला जाने वाले विशेषज्ञों को इस बात का खास ध्यान रखना होता है।


 


गेहूं और जौ की प्रजातियों को लेकर आज से तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन 


 


 


गेहूं और जौ की नई प्रजातियों पर देशभर में चल रहे शोध को लेकर इंदौर में आज से तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू होगा। इसमें देशभर के करीब 400 कृषि वैज्ञानिक और 200 किसान हिस्सा लेंगे। 25 अगस्त को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर गेहूं उत्पादन और अनुसंधान पर रिपोर्ट पेश करेंगे



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