मध्यप्रदेश के महेश्वर में राजराजेश्वर शिवालय पूरे भारत में अनोखा है
प्राचीनकाल से ही पवित्र नगरी महिष्मति के नाम से प्रसिद्ध है। हजारों वर्ष प्राचीन इस नगरी का इतिहास काफी समृद्ध रहा है। मां नर्मदा के उत्तर तट पर बसी यह नगरी सुर-असुर, ऋषि-मुनियों, तपस्वियों की तपस्थली रही है। इस नगरी की महिमा का उल्लेख रामायण, श्रीमद् भागवत, शिवपुराण, स्कंदपुराण, वायुपुराण आदि में मिलता है। हर काल में इस नगरी का संबंध भगवान शंकर से रहा है।
इसलिए इस नगरी को गुप्त काशी की भी संज्ञा दी गई है। इसका प्रमाण यहां घाटों पर विराजित शिवलिंगों व इतिहास प्रसिद्ध शिवालयों की वृहद् श्रृंखला से मिलता है। इन्हीं इतिहास प्रसिद्ध शिवालयों में से एक है भगवान राजराजेश्वर शिवालय। सदियों से मंदिर में शुद्ध घी से 11 अखंड नंदा दीपक प्रज्वलित हैं। यह शिवालय संपूर्ण भारत में अनोखा हैमंदिर के महंत चैतन्यगिरि ने बताया कि कथा के अनुसार भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को अपनी शक्ति पर घमंड आ गया। भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र को सहस्रार्जुन के रूप में महिष्मती पर राज्य करने का आदेश दिया। वीर सहस्रार्जुन ने प्रजापालक राजा के रूप में राज करते हुए अपने गुरु दत्तात्रेय से आज्ञा पाकर भगवान विष्णु की तपस्या कर सहस्रबाहु होने का वरदान प्राप्त किया। भगवान विष्णु के समक्ष शरीर विलीन करके शिवलिंग में समाहित हुएपं. जानकीवल्लभ पंड्या ने बताया कि 'राजाबाहु सहस्रबाहु तस्य स्मरण मात्रेन गतं नष्टचं लभ्यते' इस मंत्र का जाप करने से खोई संपत्ति व चोरी गई वस्तु को पुनः प्राप्त किया जा सकता है। शिवालय में शिव-पार्वती की कलात्मक अष्टधातु की प्रतिमा के साथ मंदिर परिसर में शिव पंचायतन के रूप में देवी महिषासुर मर्दिनी, भगवान विष्णु-गरुड़, भगवान सूर्य व गणेशजी रिद्धि-सिद्धि सहित विराजमान है। यहां वर्षभर हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन दर्शन करते आते हैं। श्रावण के सोमवार को यहां विशेष भीड़ रहती है। इसी प्रकार राज्याश्रय प्राप्त करने के लिए यहां देश-प्रदेश के कई राजनेता भी दर्शन-पूजन करने के लिए पहुंचते हैं
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