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कहीं आप भी तो नहीं हो रहे हैं पैरेंटल बर्नआउट का शिकार, जानिए क्या हैं इसके लक्षण और बचाव के उपाय

  • ‘पैरेंटल बर्नआउट’ एक तरह की शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक थकावट है जो कि आजकल की भाग-दौड़ वाली लाइफस्टाइल और बच्चों की लगातार देख-भाल के चलते उत्पन्न तनाव और थकान की वजह से होती है।

आज अधिकांश अभिभावक अपने बच्चे को हर फील्ड में ‘परफेक्ट’ बनाना चाहते हैं और इस परफेक्ट पैरेंटिंग का दबाव आज के समय में कुछ ज़्यादा ही बढ़ गया है। सभी चाहते हैं उनका बच्चा स्मार्ट बने और उसमें कई तरह के कौशल हों। वह पढ़ाई के साथ-साथ ड्रॉइंग,पेंटिंग, डांस, सिंगिंग, क्राफ्ट, स्पोर्ट्स आदि में भी सबसे आगे रहे।

बच्चों को ऑल राउंडर बनाने के चक्कर में माता-पिता पैरेंटल बर्नआउट का शिकार हो रहे हैं जिसका असर न सिर्फ़ पैरेंट्स, बल्कि बच्चों पर भी पड़ रहा है जैसे जल्दी ग़ुस्सा आना, बात-बात पर चिड़चिड़ाना, अपनी बात मनवाने के लिए ज़िद करना और किसी भी काम में अच्छा ना कर पाने या असफल होने पर निराशा से भर जाना आदि लक्षण देखने को मिल रहे हैं।

पैरेंटिंग एक बड़ी ज़िम्मेदारी है। अगर आपको अपने काम के लिए सराहना, मान्यता और समर्थन नहीं मिलता, तो आप थक सकते हैं और तब आप बर्नआउट के शिकार हो सकते हैं। और ऐसा बच्चे के साथ भी होता है।

पैरेंटल बर्नआउट के लक्षण

  • शारीरिक या भावनात्मक थकावट का अनुभव करना
  • अपनी पैरेंटिंग को लेकर शर्मिंदगी महसूस करना या यह सोचना कि हम उतने अच्छे माता-पिता नहीं हैं या दूसरे हमसे बेहतर अभिभावक हैं।
  • माता-पिता होने की भूमिका से परेशान होना।
  • अपने बच्चों से भावनात्मक रूप से अलग महसूस करना।
  • बच्चों से रिश्ते की बॉन्डिंग या मज़बूती में कमी आना।

क्या हो सकते हैं कारण

  • काम का बोझ

हर माता-पिता को एक समय पर कई ज़िम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं। ऐसे में वह बिना आराम किए लगातार काम करते हैं। यह बर्नआउट का कारण बन सकता है।

  • सपोर्ट न मिलना

कामकाजी माओं के लिए पैरेंटिंग और भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि उन्हें घर के काम, घर में यदि बड़े बुज़ुर्ग हैं तो साथ-साथ उनकी ज़िम्मेदारी भी उठानी पड़ती है और सहयोग के अभाव में कई बार यह सब उन्हें अकेले ही करना पड़ता है। ऐसे में वे बर्नआउट की शिकार हो सकती हैं।

  • तारीफ़ न मिलना

सराहना थक के चूर हुए इंसान के चेहरे पर भी मुस्कान ले आती है। उसके दिल को सच्ची तारीफ़ मिले, तो एक सुकून-सा महसूस होता है। घर की ज़िम्मेदारी और बच्चों की परवरिश को अच्छी तरह संभालने के बाद भी जब तारीफ न मिले, तो महिला का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है और बर्नआउट के रूप में सामने आता है। कई लोग बर्नआउट को तनाव समझ लेते हैं, लेकिन बर्नआउट एक लंबे समय तक चलने वाली स्थिति है। तनाव अधिक सक्रियता का कारण बनता है, जबकि बर्नआउट लाचारी और निराशा की उपज है।

इस थकावट से निपटने के तरीक़े

  • ख़ुद के लिए समय निकालें

बच्चों की परवरिश में ख़ुद को न भुला दें। थोड़ा समय अपने लिए ज़रूर निकालें। अपनी सेहत को प्राथमिकता दें। ऐसा करने को स्वार्थी होना ना समझें। एक किशोरवय बच्चे की मां ने तो अपने लिए तीन नियम बनाकर, फ्रिज पर नोट की तरह चिपका दिया है, ताकि रोज़ करना याद रहे। पहला, बिस्किट या मैदे की कोई वस्तु खाने के बजाय बादाम खाना। दूसरा, नज़र उठाकर आसमान की तरह देखना। तीसरा, रोज़ कोई एक काम ऐसा करना, जिसे करने में ख़ुशी मिलती हो, जैसे गार्डनिंग, संगीत सुनना आदि। मी टाइम ख़ुद को रिचार्ज करने के लिए बहुत ज़रूरी है।

  • मदद मांगने से न हिचकिचाएं

यदि आप कामकाजी हैं, तो घर और बच्चों की ज़िम्मेदारियों के बीच यदि आपको किसी की मदद मिल जाए तो काम आसान हो जाते हैं। सुपरमॉम बनने की कोशिश न करें। इसके लिए यदि आपको किसी की मदद मांगनी पड़ रही है, तो इससे हिचकिचाएं नहीं।

  • जि़म्मेदारियों को बांटें

परवरिश की जि़म्मेदारी अकेले मां की नहीं होती है, इस बात को घर के लोगों और आपके पार्टनर को समझना ज़रूरी है। बेशक मां की ज़िम्मेदारी थोड़ी ज़्यादा हो सकती है, लेकिन अगर आप पैरेंटल बर्नआउट का शिकार नहीं होना चाहतीं, तो ज़िम्मेदारियों को आधा-आधा बांट लें। इससे आप थकान से दूर रह पाएंगी और ज़िंदगी काफ़ी आसान हो जाएगी।

  • लोगों से मिले-जुलें

ख़ुश रहने के लिए अपने जीवन को बच्चे तक सीमित न कर लें। उन लोगों से मिले-जुलें जिनसे मिलकर, बात करके आपको ख़ुशी मिलती है या सुकून का अहसास होता है।

  • ऐसे लक्ष्य हानिकारक हैं

हर अभिभावक की कोशिश होती है अपने बच्चे को परफेक्ट बनाने की। इसके लिए वे अपने सपनों का बोझ बच्चों पर डालने की ग़लती कर बैठते हैं और जब बच्चे उस पर खरे नहीं उतरते तो दोनों को निराशा हाथ लगती है। यह दोहरा नुक़सान है। इससे बचकर रहना ही बेहतर है।

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