मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री का सस्पेंस समाप्त हो गया है। मोहन यादव नए मुख्यमंत्री होंगे। राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा डिप्टी सीएम होंगे। शपथ समारोह 13 दिसंबर को हो सकती है।
मध्यप्रदेश में मोहन यादव नए मुख्यमंत्री होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री के इस फैसले से चौंकिए और चौंकते रहिए। क्योंकि यही है भाजपा की सियासत का सबसे महत्त्वपूर्ण दांव। संशय बनाकर सबको काम में जुटाना और ऐसा चेहरा सामने लाना, जिसके बारे में किसी ने कुछ सोचा भी न हो। यह सत्ता के केंद्र की शिफ्टिंग भी है, जिस पर कयास तो थे पर सटीक कुछ भी नहीं। प्रदेश की राजनीति सालों से मध्य क्षेत्र, ग्वालियर-चंबल और विंध्य के इर्द-गिर्द ही झूलती रही है। इसकी एक बार फिर शिफ्टिंग मुख्यमंत्री और एक उप मुख्यमंत्री बनाकर मालवा किए जाने की कोशिश शुरू की गई है। महाकाल लोक और आदि शंकराचार्य की नगरी का पुनरोद्धार इसी से निकला था। यह आध्यात्मिक नव जागरण अब सियासत से होकर सत्ता तक पहुंचाने की तैयारी है। मोहन का चयन अनायास नहीं है। हिंदुत्व को जिस तरह से मालवा में धार दी जा रही है, वह भी बड़े संकेत की ओर इशारा कर रहे हैं।
कद्दावरों का तिलस्म
वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की बड़ी भारी फौज जीती है। नरेेद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, गोपाल भार्गव जैसे नेता इसमें शामिल हैं। पार्टी की निगाह में ये कद्दावर तो हैं मगर भविष्य की राजनीति में फिट नहीं बैठते हैं। लिहाजा मोहन यादव के रूप में पार्टी ने नए चेहरे वाला मुख्यमंत्री चुनना बेहतर समझा।
जाति जो प्रदेश के बाहर भी साधे
पिछड़ी जातियों में अब तक प्रदेश की अगुवाई का मौका लोधी और किरार को मिला। 2004 में बाबूलाल गौर मुख्यमंत्री बने थे पर वह यादव चेहरा नहीं बन पाए। पार्टी ने उन जातियों को सूचीबद्ध किया जिन्हें सत्ता के शीर्ष में कम भागीदारी मिली। प्रदेश के बाहर की राजनीति को भी साधने के लिए हुई खोज में मोहन का नाम सटीक माना गया। दो उप मुख्यमंत्रियों में से एक दलित और एक ब्राह्मण बनाकर सोशल इंजीनियरिंग का चक्र पूरा करने की कोशिश हुई।
पीढ़ी परिवर्तन का रोडमैप
पार्टी पीढ़ी परिवर्तन का संदेश देना चाहती थी, मगर दमखम वाले नेता की तलाश थी। मोहन यादव इस तरह के नेता हैं। उनकी छवि लड़ाकू और जुझारू नेता की रही है। शासन-प्रशासन में वह पूरे हक के साथ अपने काम करवाते रहे हैं। ऐसे में उनका चयन करके पार्टी ने आगे की राह का जिम्मा उन्हें सौंपने में हिचक नहीं की।
चेहरा बदलना क्यों जरूरी था
शिवराज पूरी मेहनत से चुनाव में जुटे हुए थे। लाड़ली बहना योजना पर सवार होकर उन्होंने पूरे प्रदेश में पार्टी का और खुद का प्रचार किया। नतीजों से प्रतीत हुआ कि उनके चेहरे और बातों से जनता उबी नहीं है। मगर, पार्टी के मन में कुछ नया और तूफानी करने का द्वंद्व चल रहा था। यही वजह रही कि बदलने का निर्णय कर लिया गया।
अनुभव का उपयोग
पार्टी अनुभवी नेताओं का उपयोग भी करना चाहती है। नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष बनाने का फैसला इसकी पुष्टि करता है। बाकी नेताओं की भूमिका तय करने का काम भी अंदरखाने जारी है। कुछ संगठन में और कुछ सत्ता में एडजस्ट किए जाएंगे।
राजेंद्र शुक्ल और जगदीश देवड़ा होंगे डिप्टी सीएम
मध्यप्रदेश में सोमवार को भाजपा विधायक दल की बैठक में उज्जैन दक्षिण से तीसरी बार विधायक चुने गए 58 वर्षीय मोहन यादव के नाम पर मुहर लगाई। इसके बाद वह सरकार बनाने के लिए सबसे बड़ा दल होने का दावा पेश करने राजभवन गए। विधायक दल की बैठक में दो डिप्टी सीएम बनाना भी तय हुआ, इनमें रीवा विधायक राजेंद्र शुक्ल और मल्हारगढ़ विधायक जगदीश देवड़ा शामिल हैं। पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष बनाया जाएगा। हालांकि, डिप्टी सीएम और विधानसभा अध्यक्ष के नामों की अधिकृत घोषणा नहीं की गई है। शपथ एक दो दिन मेंः नए मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्री की शपथ 13 या 14 दिसंबर को हो सकती है। अभी आधिकारिक तौर पर तारीख तय नहीं हुई।
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