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कैकयी और राजा दशरथ के प्रसंग से सीखें:पति-पत्नी के बीच गुस्सा और लालच आ जाए तो पूरा परिवार बर्बाद हो सकता है

रामायण का प्रसंग है। राजा दशरथ ने घोषणा कर दी थी कि राम अयोध्या के राजा बनेंगे। राम के राज तिलक का दिन भी तय हो गया था। दशरथ ने सोचा कि ये शुभ समाचार सबसे पहले मुझे कैकयी को देना चाहिए।

दरअसल, कैकयी राम से बहुत प्रेम करती थीं और राम को राजा बनाने के लिए दशरथ से कई बार कह भी चुकी थीं।

कैकयी की एक दासी थी मंथरा। उसे ये बात मालूम हो गई तो वह राजा दशरथ से पहले कैकयी के पास पहुंच गई। मंथरा की एक आदत थी कि वह बने बनाए अच्छे कामों को भी बिगाड़ देती थी।

मंथरा ने कैकयी को अपनी बातों में ऐसा उलझाया कि कैकयी राम को दुश्मन समझने लगीं। मंथरा ने कहा कि तुम्हारे बेटे भरत को राजा बनना चाहिए। कैकयी भी भरत के मोह में फंस गईं और भरत के लिए राज-पाठ का लालच उसके मन में जाग गया।

जब राजा दशरथ महल पहुंचे तो उन्हें मालूम हुआ कि कैकयी कोप भवन में है और गुस्से में है। राजा तुरंत कैकयी के पास गए। उनकी प्रिय रानी गुस्से में थी तो राजा दशरथ ने उन्हें मनाने की कोशिश शुरू कर दी, लेकिन कैकयी नहीं मानीं और उन्होंने राजा से अपने दो वर मांग लिए। पहला वर भरत को राज और दूसरा राम को वनवास।

दशरथ कैकयी के गुस्से और जिद के आगे हार गए और उन्हें दो वर देने पड़ गए।

प्रसंग की सीख

इस प्रसंग से हमें ये संदेश मिल रहा है कि पति-पत्नी के बीच अगर गुस्सा, मोह, जिद और लालच जैसी बुराइयां आ जाती हैं तो पूरा परिवार बिगड़ सकता है। इस कथा में कैकयी इन चारों बुराइयों में फंस गई थीं, इस वजह से राम को वनवास जाना पड़ गया, पुत्र वियोग में दशरथ ने प्राण छोड़ दिए और अयोध्या के सभी लोग दुखी हो गए। वैवाहिक जीवन में इन चारों बुराइयों से बचना चाहिए।



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