कहानी - मीरा बाई का विवाह राणा कुंभा के साथ हुआ था। राणा कुंभा को भोजराज के नाम से भी जाना जाता है। मीरा बाई का विवाह तो हो गया था, लेकिन वे बचपन से ही कृष्ण भक्ति में रमी हुई थीं। एक बार मीरा की मां ने समझाने के लिए बोल दिया था कि कृष्ण ही तेरा दूल्हा है। तभी से मीरा कृष्ण को अपना सबकुछ मान चुकी थीं।
जब मीरा बाई के विवाह का अवसर आया तो मीरा मनुष्य से विवाह करने के लिए मना करने लगीं, लेकिन परंपरा थी, घर के बड़ों का दबाव था तो उनका विवाह राणा कुंभा से हो गया। जिस घर में मीरा का विवाह हुआ, वहां की कुलदेवी तुलजा भवानी थीं। सभी दुर्गा को पूजते थे।
मीरा ने कह दिया था कि मैं तो कृष्ण की ही पूजा करूंगी। इस बात से मीरा का विरोध होने लगा। मीरा की ननद ने अपने भाई राणा कुंभा से कहा, 'घर का कामकाज तो मीरा बहुत अच्छे ढंग से करती है, लेकिन रात को मंदिर में चली जाती है और दरवाजा बंद कर लेती है। कोई गुप्त प्रेम तो नहीं है?'
आधी रात को भाई-बहन मंदिर में पहुंच गए। मंदिर के अंदर मीरा कृष्ण की मूर्ति के सामने बैठकर भजन गा रही थीं और बात कर रही थीं। क्रोध में आकर राणा ने दरवाजा तोड़ा और दोनों भाई-बहन अंदर गए तो देखा कि मीरा बैठी हुई हैं और एकटक कृष्ण को निहार रही हैं।
राणा ने मीरा से पूछा, 'तुम किससे बात कर रही थीं? कौन था यहां?'
मीरा ने कृष्ण की ओर इशारा करते हुए कहा, 'ये, ये ही मेरे सबकुछ हैं।'
जिस भक्ति में डूबकर मीरा ने ये बात कही थी, राणा को समझ आ गया कि ये स्त्री अद्भुत है। इसके बाद राणा ने जीवनभर पति के रूप में मीरा की भक्ति का साथ दिया।
सीख - पति-पत्नी के रिश्ते में दोनों के लक्ष्य अलग-अलग हो सकते हैं। अगर गहराई से पति-पत्नी एक-दूसरे के लक्ष्य, भाव और पसंद-नापसंद को समझेंगे तो ये रिश्ता जीवनभर निभाया जा सकता है। छोटे-छोटे मतभेद की वजह से रिश्ता तोड़ा नहीं जा सकता है। मतभेद मिटाएं और रिश्ता निभाएं।
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