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ब्लैक फंगस के इलाज में एमवायएच बना हब:90% मरीज यहीं भर्ती, महंगे इलाज से राहत; कारगर दवाइयां व इंजेक्शन की उपलब्धता से मौतें हुई कम

 

कोरोना सक्रमण पर नियंत्रण के बाद शहर के लिए यह राहत वाली खबर है कि अब यहां ब्लैक फंगस (म्युकोरमाइकोसिस) के मरीज भी काफी कम हो गए हैं। इतना ही नहीं इसकी वजह से होने वाली मौतें भी बहुत कम हो गई हैं। खास बात यह कि शहर का सबसे बड़ा महाराजा यशवंतराव अस्पताल (एमवायएच) इन दिनों एक तरह से ब्लैक फंगस मरीजों के कारगर इलाज का हब बन गया है। शहर के ब्लैक फंगस के 90 फीसदी एमवायएच में भर्ती हैं, जबकि 10 फीसदी निजी अस्पतालों में। यहीं आसपास के अन्य जिलों के मरीज भी एमवायएच में ही भर्ती हैंं।

इसका खास कारण ब्लैक फंगस के इलाज में प्रयुक्त होने वाली सारी दवाइयां, इंजेक्शन आदि अब यहां पर्याप्त मात्रा में और फ्री में उपलब्ध तो हैं ही, मरीज भी जल्द रिकवर हो रहे हैं। यहां हर दिन 13-14 सर्जरी हो रही है। निजी अस्पतालों में महंगी जांच व इलाज के खर्च के चलते मरीजों का रुख तेजी से एमवायएच की ओर हुआ है।

तब लोग कोरोना और ब्लैक फंगस से तोड़ रहे थे दम

शहर में सबसे पहला ब्लैक फंगस का पहला मरीज मई में सीएचएल में भर्ती हुआ था। यह वह दौर था जब कोरोना की दूसरी लहर चरम पर थी और सभी अस्पताल फुल होकर कई मौतें हो रही थीं। इधर, एमवाय अस्पताल में 13 मई को पहला मरीज भर्ती हुआ था और तब एक पखवाड़े में ही 450 से ज्यादा मरीज भर्ती हुए और 32 लोगों की मौत हो गई थी। इस दौरान ब्लैक फंगस के महंगे इंजेक्शन भी कहीं उपलब्ध नहीं थे जिसके चलते काफी हाहाकार मचा था। तब स्थिति काफी भयावह और कोरोना संक्रमण जैसी थी जिसमें रोज कई लोग दम तोड़ रहे थे।

483 मरीज पूरी तरह स्वस्थ होकर लौटे

बहरहाल, इस बीच एमवायएच में ब्लैक फंगस के मरीजों के लिए 14 वार्ड बनाए गए जो फुल हो गए। अब स्थिति यह है कि यहां मरीजों की संख्या घटकर 136 हो गई है और 8 वार्डों में ही मरीज भर्ती हैं। इनमें से एक कोरोना पॉजिटिव है जबकि 129 मरीज पोस्ट कोविड हैं। 6 मरीजों में कोविड हिस्ट्री नहीं मिली है। खास बात यह कि अब तक 763 सर्जरी हो चुकी हैं। इनमें से कुछ मरीज ऐसे में भी हैं जिनकी 2 से 4 सर्जरी हुई है। अब तक 483 को डिस्चार्ज किया जा चुका है, जबकि कुल 53 मौतें हो चुकी हैं।

एमएचवाय में भर्ती ब्लैक फंगस के मरीज।
एमएचवाय में भर्ती ब्लैक फंगस के मरीज।

इन कारणों के चलते तेजी से हुई संख्या कम और नियंत्रण

  • खास कारण कोरोना का संक्रमण जैसे ही दिनोंदिन कम हुआ, इधर मरीजों की संख्या भी कम हुई। हालांकि अब तक रिसर्च में सीधे तौर से यह बात साबित ही नहीं हुई है कि ब्लैक फंगस बीमारी कोरोना पॉजिटिव मरीजों को दिए गए स्टेराइड, ज्यादा मात्रा में एंटीबायोटिक, ऑक्सीजन, शुगर या इससे जुड़े अन्य कारणों के चलते हुई। फिर भी जितने भी इससे ग्रस्त हुए वे पोस्ट कोविड मरीज ही हैं। 20-25 फीसदी कोरोना मरीज ऐसे भी हैं जो तब अस्पताल में भर्ती भी नहीं हुए हैं। 5-10 फीसदी ऐसे मरीज भी हैं जिन्हें पहले कभी पता ही नहीं चला कि वे कोरोना पॉजिटिव होकर ठीक भी हो गए।
  • ब्लैक फंगस के मरीज जैसे ही बढ़ना शुरू हुए तो इलाज को लेकर स्थिति कोरोना की दूसरी लहर जैसी थी। अस्पतालों में बेड खासकर दवाइयां, इंजेक्शन नहीं थे। तब अस्पतालों और बाजारों में इसके लिए भीड लगी रही। फिर जनप्रतिनिधियों के प्रयासों से इसमें प्रयुक्त होने वाली दवाइयां उपलब्ध होने लगी। वर्तमान में 136 मरीजों को निर्धारित दवाइयां व एमफोटेरेसिन इंजेक्शन लग चुके हैं तथा 1837 इंजेक्शन अस्पताल में उपलब्ध हैं।
  • वैसे मरीजों को उनकी स्थिति के अनुसार लाइकोसोमल (एम्फोटेरेसिन बी का ही प्रकार) व कोसोकोनाजोल की दवाइयां व इंजेक्शन लगाए जाते हैं। एक दिन में यह 3 से 4 बार लगते हैं। बाजार में इसकी कीमत करीब 1 हजार रु. हैं लेकिन एमवाय अस्पताल में फ्री लगाए जाते हैं और वह भी तब तक जब तक मरीज की स्थिति के अनुसार जरूरत होती है। जो सामान्य ब्लैक फंगस का मरीज है उसे इसकी छोटी मात्रा वाला इंजेक्शन लगाया जाता है जिसकी कीमत 250 रु. है।
  • ऐसे ही ऐसे मरीज जो ब्लैक फंगस से ज्यादा ग्रस्त हैं उन्हें एम्फोटेरेसिन के 5 इंजेक्शन एक दिन में लगाए जा रहे हैं। प्रति इंजेक्शन इसकी कीमत 7 हजार रु. है। यह भी यहां फ्री ऑफ चार्ज है।

इलाज व रिकवरी मरीजों की बीमारी पर निर्भर

ब्लैक फंगस मरीजों के लिए एमवाय अस्पताल में 14 वार्ड इसलिए हैं कि उनका अच्छा इलाज होने के ही डिस्चार्ज किया जा सके। वैसे इलाज मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है कि उसकी ब्लैक फंगस की अवस्था क्या है। कई बार आंखोें, नाक, जबड़ों, दांतों में दो-तीन स्थानों पर साथ होता है तो अलग-अलग सर्जरी होती है जिसमें समय लगता है। ब्रेन में फंगस होने की स्थिति में कई महीनों तक इलाज चलता है। कई बार फंगस हडिडयों को भी प्रभावित करता है। डिस्चार्ज के बाद भी हर पांच दिनों बाद फॉलोअप के लिए अस्पताल बुलाया जा रहाहै। वैसे सामान्य ब्लैक फंगस की स्थिति में सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ रही है। विशेष प्रक्रिया के तहत फंगस को साफ कर निकाल दिया जाता है।

मौतें 10 फीसदी से भी कम

अस्पताल के ब्लैक फंगस यूनिट के एचओडी डॉ. वीपी पाण्डे ने बताया कि पहले यह भ्रांति थी कि इससे ग्रस्त मरीजों में 50 फीसदी की मौत हो जाती है जबकि ऐसा नहीं है। मौतें 10 फीसदी से भी कम हुई हैं वह भी इसलिए कि शरीर में सेप्टेसीमिया फैलना इसकी वजह होती है। कई मरीज किडनी, लीवर की बीमारी से ग्रस्त होते हैं ऐसे में उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम होती है जिससे उनकी मौत होती है। कोरोना के इलाज के दौरान स्टेराइड, ज्यादा एंटीबायोटिक देना ब्लैक फंगस के कारण हैं, ऐसा नहीं है। इस पर अभी शीर्ष स्तर पर रिसर्च चल रहा है। संभव है कि कोरोना से ग्रस्त रहे मरीजों की इम्युनिटी कम होना एक कारण हो लेकिन अभी कोई ठोस तथ्य सामने नहीं आया है।

इसलिए निजी अस्पतालों से एमवायएच आ रहे मरीज

अस्पताल अधीक्षक डॉ. पीएस ठाकुर ने बताया कि कुछ समय पहले पूरे प्रदेशभर में ब्लैक फंगस के 1200 मरीज थे जिनमें से केवल इंदौर व आसपास के ही 670 मरीज थे। अब तो निजी अस्पतालों में बेड खाली होने के बावजूद लोग एमवायएच में भर्ती हो रहे हैं क्योंकि वहां महंगा इलाज होता है और इलाज भी लम्बा चलता है जबकि एमवायएय में सब फ्री है।

  • निजी अस्पतालों में एक बार की सर्जरी में 2 से 5 लाख रु. लग रहे हैं। इसके अलावा 10 हजार रु. प्रतिदिन व अन्य चार्जेस।
  • महंगी दवाइयों बाजारों से खरीदनी पड़ रही है जबकि एमवायएच में लाखों का इलाज मुफ्त में हो रहा है।
  • एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. संजय दीक्षित के मुताबिक अब तो पहले से काफी अच्छी स्थिति है। मरीजों को सर्जरी के लिए इंतजार नहीं करना पड़ रहा है। मौतें भी तेजी से कम हुई है और इलाज की सारी दवाइयां व इंजेक्शन पर्याप्त मात्रा में हैं।



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