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हाईकोर्ट सरकार से मांगा जवाब:सात साल से कम अनुभव वाले वकील कैसे कर रहे क्रिमिनल केस में पैरवी

हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को आड़े हाथों लेते हुए पूछा कि प्रदेश में उच्च न्यायालय एवं निचली अदालतों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 24 के विपरीत कैसे सात साल से कम अनुभव के वकील शासन की ओर से आपराधिक प्रकरणों में पैरवी कर रहे हैं। उनके द्वारा हाईकोर्ट एवं जिला न्यायालयों में शासन का प्रतिनिधित्व करना अवैधानिक एवं दंड प्रक्रिया संहिता के विपरीत है।

प्रदेश सरकार तीन हफ्ताें में जवाब पेश करे। यह आदेश सामाजिक कार्यकर्ता ज्ञानप्रकाश द्वारा दाखिल जनहित याचिका में आए, जिस पर मंगलवार को सुनवाई हुई। याचिका में आधार लिया गया कि शासन का प्रतिनिधित्व करने के लिए अधिवक्ता के पास सात साल का न्यूनतम अनुभव होना आवश्यक है।

इसके विपरीत प्रदेशभर में भारी संख्या में अधिवक्ता बिना अर्हता पूरी किए शासन की ओर से उपस्थित होते हैं। सुनवाई के दौरान रजिस्ट्रार जनरल, उच्च-न्यायालय के वकील सिद्धार्थ राधेलाल गुप्ता ने यह भी बताया कि पहले भी कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया, लेकिन किसी प्रकार के ठोस कदम नहीं उठाए गए। कोर्ट मित्र अधिवक्ता आदित्य सांघी ने भी न्यायालय को बताया कि हालात इतने बुरे हैं कि संविदा पर पैनल अधिवक्ताओं की नियुक्ति कर शासन का पक्ष रखने के लिए अधिकृत कर दिया जाता है।
एक-एक, दो-दो साल के अनुभव वालों को भी रख लेते
याचिका में कहा गया कि धारा 24 एवं 25 दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत किसी भी आपराधिक प्रकरण की पैरवी के लिए चाहे वह उच्च न्यायालय में हो अथवा जिला एवं सत्र न्यायालय में शासन की पैरवी के लिए लोक अभियोजक को ही नियुक्त किया जाना चाहिए, जिसे 7 वर्ष का न्यूनतम अनुभव हो।

प्रदेशभर में एक-एक दो-दो साल के अनुभव वाले कनिष्ठ अधिवक्ता गंभीर आपराधिक प्रकरणों में पैरवी कर रहे हैं, जो दंड प्रक्रिया संहिता का उल्लंघन है एवं शासन की इसमें संलिप्तता है। याचिका में कहा गया कि राजनीतिक दबावों में आकर अर्हता पूरी न करने वाले अधिवक्ताओं को न ही बस संविदा पर नियुक्त किया जाता है, बल्कि उन्हें महत्वपूर्ण मामलों में पैरवी के लिए अधिकृत भी कर दिया जाता है।

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