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जीवन मंत्र:महामारी में शरीर को बचाना है तो रोज योग जरूर क

 

ये बहुत गहरा सवाल है कि शरीर के अंदर आत्मा रहती है और हम शरीर नहीं हैं, आत्मा है। शरीर आत्मा की पैकेजिंग है। इस पर कई साहित्य लिखे भी गए हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्होंने अपने साधारण जीवन में इसका प्रयोग किया और लोगों ने इसे अनुभव भी किया।

उनमें से एक थे महर्षि रमण। महर्षि रमण का अरुणाचल प्रदेश में स्कंध आश्रम था। उस आश्रम में सारे विषैले, हिंसक और साधारण जीव एक साथ रहते थे। बिना एक दूसरे को नुकसान पहुंचाए, बिना एक दूसरे से डरे। उस आश्रम में जाकर जब लोग महर्षि रमण को देखते तो आश्चर्यचकित हो जाते थे।

एक बार एक सांप महर्षि रमण के पैरों पर चढ़ा। लोग दंग रह गए। देखने वालों को ये भी लगा कि ये अब किसी समय महर्षि रमण को डंस लेगा। लोगों ने उनसे कहा कि आप इसे हटा दीजिए, वर्ना ये आपको डंस लेगा, लेकिन महर्षि रमण बिल्कुल सामान्य और शांत रहे। उन्होंने लोगों को जवाब दिया कि ये ऐसे ही चला जाएगा, नहीं काटेगा।

और कुछ देर में सांप वाकई बिना काटे लौट गया। तब लोगों ने उनसे पूछा कि अगर ये आपको डंस लेता तो...? महर्षि रमण ने जवाब दिया, अगर डंस भी लेता तो इस शरीर को डंसता। मैं तो आत्मा हूं, ये शरीर तो पत्थर की तरह है। आत्मा इसके भीतर है। और मैं आत्मा पर टिकता हूं। मुझे उसी का ख्याल रहता है। मेरे आसपास रहने वाले लोगों के मन में भी आत्मा पर टिकने की प्रवृत्ति होनी चाहिए।

पशु-पक्षी इसीलिए मेरे निकट आ जाते हैं, क्योंकि उनको मेरी आत्मा की अनुभूति होने लगती है। इस कारण वे मुझे और एक-दूसरे को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।

सीखः रमण ऋषि की बात बहुत गहराई वाली है। कोई उनके स्तर पर आज संभवतः जा भी न पाए, लेकिन इस महामारी के दौर में अगर हम शरीर और आत्मा में अंतर करना सीख गए तो शरीर को कई तरह के नुकसान से बचा सकते हैं। जब हम आत्मा पर टिकने लगेंगे तो शरीर के प्रति आसक्ति कम होगी, फिर हम उसे ज्यादा अच्छे से सहेज सकेंगे। इसके लिए महर्षि रमण ने ही तरीका बताया है, रोज योग करने का। जो लोग रोज योग करते हैं, वे आत्मा और शरीर में अंतर करने की स्थिति में होते हैं।


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