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मिसाल बना छत्तीसगढ़ का पालोद गांव, यहां हर परिवार 7 साल से कर रहा रक्तदान


रायपुर। दूसरों के लिए सोचने और भलाई करने के लिए कम ही लोग मिलते हैं, पर एक गांव ऐसा है, जहां पूरा समाज ही भलाई करने में लगा हुआ है। हम बात कर रहे हैं राजधानी से 30 किमी दूर स्थित गांव पालोद की । आदर्श ग्राम पंचायत पालोद के हर परिवार के सदस्य पिछले साल सात से एक हजार यूनिट ब्लड डोनेट कर चुके हैं। सैकड़ों की जान अब तक बचाई है। यहां हर साल 142 यूनिट ब्लड डोनेट करने वाले गांव में दिलचस्प बात यह है कि यहां न सिर्फ नौजवान, बल्कि महिलाएं और बुजुर्ग भी पुण्य काम समझकर रक्तदान करने में लगे रहते हैं। ब्लड बैंक में इस गांव के परिवार का यह महादान दूसरों का कल्याण कर रहा है?


बनाई है अलग से समिति


यहां के पूर्व सरपंच यशवंत साहू बताते हैं कि जरूरतमंद मरीजों को समय पर ब्लड नहीं मिलता है। लोगों ने साल 2013 में एक बैठक बुलाई थी, तभी से तय हुआ कि सामाजिक सरोकार के लिए वे भी अपना जीवन सुपुर्द करेंगे।


रक्तदान के लिए यहां ऊं श्री साईं जनकल्याण समिति भी गठित की गई है। इसमें सभी पदाधिकारी गांव के ही लोग हैं। हर परिवार का नौजवान रक्तदान करने के लिए सामने आया और तभी से यह परंपरा अभी तक चल रही है। गांव में 2500 लोगों की आबादी है। इनमें 1600 लोग वोटर्स हैं। इतनी आबादी में हर परिवार का सदस्य रक्तदान करता है।


गांव वालों ने इसलिए दूसरों को बचाने की ठानी


पूर्व सरपंच यशवंत साहू बताते हैं कि उनके गांव में साल 2001 में एक महिला को ऑपरेशन के दौरान ब्लड की जरूरत हुई, लेकिन व्यवस्था नहीं हो पाई। इतना ही नहीं, अस्पताल में मौजूद लोगों से भी विनती की तो किसी ने ब्लड नहीं दिया। उन्होंने कहा कि आसपास के लोगों को भी अब उनकी पहल से इसका फायदा मिल रहा है।


किसी ब्लड की वजह से जान गंवानी पड़े ऐसा न हो, इसलिए गांव के युवाओं ने ठानी है कि दूसरों की जान बचाते ही रहेंगे। यशवंत साहू खुद 45 बार रक्तदान कर चुके हैं। इसके अलावा नागरिक लक्षमंतिन धीवर, पंच मोनिका साहू, पंच हेम साहू, सुनीता साहू, अनीता विश्वकर्मा, भोलाराम साहू, भोजराम साहू, ईश्वर साहू , कौशल साहू, रानी धीवर, गीता साहू,द्रोन साहू आदि ने कई बार रक्तदान किया है।


साल में दो बार लगता है कैंप


इस गांव में साल में दो बार रक्तदान करने के लिए शिविर लगाया जाता है। लोग बढ़ चढ़कर इसमें हिस्सा लेते हैं। कइयों ने हर साल रक्तदान किया है। गांव में बाकायदा दो बार शिविर लगता है। लोग खुद ही घर से निकलकर रक्तदान करते हैं


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