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प्रदोष के व्रत में शिवपूजा का विधान है और महादेव मनचाही मुराद पूरी करते हैं


शास्त्रों में प्रदोष के व्रत की बड़ी महिमा बताई गई है। कहा गया है कि इस व्रत को श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से जो भक्त करता है उसको जन्म-जन्मांतर के पापकर्मों से छुटकारा मिल जाता है। महीने में दो बार आने वाले प्रदोष व्रत भगवान भोलेनाथ को समर्पित है और इस दिन संध्याकाल में इनकी आराधना करने से शिव प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं।


प्रदोष व्रत कथा


स्कंद पुराण के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षाटन के लिए सुबह घर से निकलती और रात ढलने के पहले अपने घर लौट आती थी। एक दिन जब वह भिक्षाटन कर लौट रही थी तो रास्ते में नदी किनारे उसको एक सुंदर बालक दिखाई दिया, जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था। दुश्मनों ने उसके पिता की हत्या कर उसका राज्य हड़प लिया था और उसकी माता की भी अकाल मृत्यु हो चुकी थी। गरीब ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया।


 


कुछ समय बाद ब्राह्मणी दोनों बालकों को लेकर मंदिर दर्शन के लिए गई। मंदिर में उसकी भेंट महर्षि शाण्डिल्य से हुई। महर्षि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उसको मिला है वह विदर्भ राज्य के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे जा चुके हैं और उसकी माता को भी जंगली जानवर मारकर अपना भोजन बना चुका है। ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ऋषि आज्ञा से ब्राह्मणी के साथ दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया।


एक दिन दोनों बालक वन में भ्रमण कर रहे थे तभी उनको कुछ गंधर्व कन्याएं दिखाई दी। ब्राह्मण बालक तो उसी समय घर लौट आया लेकिन राजकुमार धर्मगुप्त अंशुमती नाम की गंधर्व कन्या से वार्तालाप करने लगा। गंधर्व कन्या और राजकुमार को एक दूसरे से प्यार हो गया, गंधर्व कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया। दूसरे दिन जब वह फिर से गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है। भगवान भोलेनाथ की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कर दिया।


 


इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर आक्रमण कर अपना खोया हुआ राज्य वापस प्राप्त कर लिया। यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था।


वहां उस महल में वह ब्राह्मणी और उसके पुत्र को आदर के साथ ले आया और अपने साथ रखने लगा। ब्राह्मणी और उसके पुत्र के सभी दुख और गरीबी दूर हो गई और वे सुख से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। एक दिन अंशुमती ने राजकुमार से इन सभी बातों के पीछे की वजह और रहस्य पूछा, तब राजकुमार ने अंशुमती को अपने जीवन की पूरी कथा बताई और साथ ही प्रदोष व्रत का महत्व और व्रत से प्राप्त फल से भी अवगत कराया।


 


प्रदोष व्रत में होती है शिव पूजा


स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोष के व्रत के दिन शिवपूजा के बाद एक्राग होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती। प्रदोष में भगवान शिव की पूजा का विधान है। प्रदोष काल दिन और रात के मिलन का समय होता है। इसलिए शास्त्रों के मुताबिक इस समय शिव पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। प्रदोष व्रत में संध्या के समय भक्त शिव मंदिर जाकर महादेव की उपासना करते हैं और पंचामृत, फल, फूल के साथ उनका पूजन करते हैं। और शिवस्तुति से उनका गुणगान करते हैं


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