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सौभाग्य और समृद्धि देने वाला संयोग:46 साल बाद स्वराशि में गुरु के रहते गुरुवार को मनेगी करवा चौथ; बुधादित्य और महालक्ष्मी योग भी रहेंगे

 

13 अक्टूबर को करवा चौथ पर गुरुवार रहेगा और गुरु अपनी ही राशि में होगा। इस ग्रह का ऐसा संयोग 46 साल बाद बन रहा है। यानी इससे पहले ऐसा 23 अक्टूबर 1975 को हुआ था। इस बार करवा चौथ पर गुरु का प्रभाव ज्यादा रहेगा। ये शुभ योग सौभाग्य और समृद्धि बढ़ाने वाला होगा। इस संयोग में की गई पूजा और व्रत से अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि बढ़ेगी।

ग्रहों की स्थिति
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि इस बार करवा चौथ पर चंद्रमा और बुध उच्च राशि में होंगे। गुरु-शनि अपनी ही राशियों में और मंगल खुद के नक्षत्र में होगा। इन पांच ग्रहों की शुभ स्थिति के साथ बुधादित्य और महालक्ष्मी योग भी रहेगा। सितारों की इस स्थिति से पूजा और व्रत का शुभ फल और बढ़ जाएगा।

पति के लिए व्रत की परंपरा सतयुग से
पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखने की परंपरा सतयुग से चली आ रही है। इसकी शुरुआत सावित्री के पतिव्रता धर्म से हुई। जब यम आए तो सावित्रि ने अपने पति को ले जाने से रोक दिया और अपनी दृढ़ प्रतिज्ञा से पति को फिर से पा लिया। तब से पति की लंबी उम्र के लिए व्रत किए जाने लगे।

दूसरी कहानी पांडवों की पत्नी द्रौपदी की है। वनवास काल में अर्जुन तपस्या करने नीलगिरि के पर्वत पर चले गए थे। द्रौपदी ने अुर्जन की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण से मदद मांगी। उन्होंने द्रौपदी को वैसा ही उपवास रखने को कहा जैसा माता पार्वती ने भगवान शिव के लिए रखा था। द्रौपदी ने ऐसा ही किया और कुछ ही समय के पश्चात अर्जुन वापस सुरक्षित लौट आए।

सूर्योदय से चांद निकलने तक रहता है व्रत
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ मनाने की परंपरा है। पति की लंबी उम्र की कामना से महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं। यानी पूरे पानी भी नहीं पीती। सुहागनों के लिए ये व्रत बहुत खास होता है। इसका इंतजार महिलाओं को साल भर रहता है।

करवा चौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से शुरू होता है और शाम को चांद निकलने तक रखा जाता है। शाम को चंद्रमा के दर्शन करके अर्घ्य अर्पित करने के बाद पति के हाथ से पानी पीकर महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं। इस दिन चतुर्थी माता और गणेशजी की भी पूजा की जाती है।


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