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क्या वर्ल्ड कप की प्रैक्टिस भारत में खेल कर होगी:ऑस्ट्रेलिया में बाउंस होगा सबसे बड़ा चैलेंज, जानिए टीम इंडिया फिर भी टेंशन में क्यों नहीं

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच मंगलवार से मोहाली में तीन टी-20 मैचों की सीरीज शुरू हो रही है। इसके बाद भारतीय टीम अपने घर में ही साउथ अफ्रीका के खिलाफ तीन टी-20 और तीन वनडे मैचों की सीरीज भी खेलेगी।

कहा जा रहा है कि BCCI ने इन तमाम मैचों का आयोजन इसलिए किया है ताकि भारतीय टीम को अगले महीने ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी-20 वर्ल्ड कप से पहले अच्छी मैच प्रैक्टिस मिल सके। लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि ऑस्ट्रेलिया की कंडीशन भारतीय परिस्थितियों से बिल्कुल अलग हैं। वहां की पिचों से गेंदबाजों को ज्यादा बाउंस मिलता है। भारत में गेंद बहुत एफर्ट डालने के बाद उछाल लेती है। फिर भारत की पाटा पिच पर खेलकर वर्ल्ड कप की प्रैक्टिस कैसे मिल सकती है?

इस सवाल का विस्तृत जवाब इस आर्टिकल में जानेंगे। साथ ही यह भी जानेंगे कि भारत में होने वाले टी-20 मुकाबले ऑस्ट्रेलिया में होने वाले मैचों से कैसे अलग होते हैं।

टीम कॉम्बिनेशन पर सबसे ज्यादा ध्यान
भारतीय टीम की नजरें इस समय कंडीशन से ज्यादा टीम कॉम्बनेशन पर हैं। एशिया कप में भारतीय टीम फाइनल में भी नहीं पहुंच सकी। इसकी सबसे बड़ी वजह यह सामने आई कि टीम के थिंक टैंक को अब तक यह पता नहीं चल सका है कि बेस्ट कॉम्बिनेशन क्या हो। किससे ओपनिंग कराई जाए और मिडिल ऑर्डर में किस नंबर पर किसे भेजा जाए।
रोहित शर्मा की कप्तानी वाली टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका के खिलाफ सीरीज के जरिए अपना बेस्ट टीम कॉम्बिनेशन जानना चाहती है। यह वजह है कि भारत ने इन दोनों सीरीज के लिए लगभग वही टीम सिलेक्ट की है जो वर्ल्ड कप खेलने ऑस्ट्रेलिया जाएगी।

टी-20 क्रिकेट में ज्यादातर देश बैटिंग फ्रेंडली पिच बनाते हैं
वर्ल्ड कप की प्रैक्टिस भारत में मैच खेलकर करने के पीछे दूसरी वजह यह है कि टी-20 क्रिकेट कहीं भी हो पिच बल्लेबाजी के अनुकूल ही होती है। ऑस्ट्रेलिया में बाउंस ज्यादा जरूर होगा लेकिन स्थिति ऐसी भी नहीं होगी कि एशियाई बल्लेबाज ठीक से खेल ही न पाएं। वैसे भी वर्ल्ड कप के दौरान पिच कैसी हो यह मेजबान देश नहीं बल्कि ICC को तय करना होता है। लिहाजा ऑस्ट्रेलिया चाहकर भी ऐसी पिचें नहीं बना सकता जहां भारत सहित एशिया के तमाम देशों के बल्लेबाजों को परेशानी हो।

बाउंस से अब भारतीय बल्लेबाजों को नहीं लगता डर
वर्ल्ड कप की प्रैक्टिस के लिए बाउंसी कंडीशन के पीछ न भागने की तीसरी वजह यह है कि पिछले कुछ सालों में भारतीय बल्लेबाजों ने उछाल का बेहतर सामना करना सीख लिया है। भारतीय टीम मौजूदा समय में दुनिया की इकलौती ऐसी टीम है जिसने लगातार दो बार ऑस्ट्रेलिया दौरे पर टेस्ट सीरीज जीतने में सफलता हासिल की है। इसके अलावा वनडे और टी-20 क्रिकेट में भी पिछले कुछ सालों में भारत का ऑस्ट्रेलिया में प्रदर्शन अच्छा रहा है।

अब जानते हैं भारत और ऑस्ट्रेलिया में होने वाले मैचों में क्या अलग होता है

  • भारत में अब तक 111 टी-20 इंटरनेशनल मैच हुए हैं। इनमें औसतन 8.15 रन प्रति ओवर की दर से रन बनते हैं। ऑस्ट्रेलिया में अब तक 54 टी-20 इंटरनेशनल मैच हुए हैं वहां 7.91 रन प्रति ओवर की दर से रन बनते हैं।
  • भारत में होने वाले मैचों में ओस का किरदार बहुत अहम होता है। रात में ओस गिरने के कारण गेंद गीली हो जाती है और उसे ग्रिप करना मुश्किल होता है। ऑस्ट्रेलिया में ओस की समस्या ज्यादा नहीं है। इसलिए वहां पूरे 40 ओवर एक जैसे कंडीशन बने रहते हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया में 54 टी-20 इंटरनेशनल मैचों में बल्लेबाजों ने 63 बार फिफ्टी प्लस का स्कोर बनाया है। इनमें तीन शतक और 60 अर्धशतक शामिल हैं। यानी वहां एक मैच में औसतन 1.16 बार बल्लेबाज फिफ्टी प्लस स्कोर बनाते हैं।
  • भारत में 111 मैचों में 150 बार फिफ्टी प्लस का स्कोर बल्लेबाजों ने बनाया है। इनमें 8 शतक और 142 अर्धशतक शामिल हैं। यानी भारत में एक मैच में औसतन 1.35 बार बल्लेबाज फिफ्टी प्लस स्कोर बनाते हैं।
  • भारत में 111 मैचों में 1178 विकेट गिरे हैं (रन आउट को छोड़कर)। यानी एक मैच में 10.6 विकेट गेंदबाज लेते हैं। ऑस्ट्रेलिया में 54 मैचों में 601 विकेट गेंदबाजों ने लिए हैं। यानी हर मैच में करीब 11.13 विकेट गेंदबाज लेते हैं।

ऊपर दिए गए आंकड़ों से जाहिर है कि भारतीय कंडीशंस ज्यादा बैटिंग फ्रेंडली होते हैं। वहीं, ऑस्ट्रेलिया में गेंदबाजों के लिए ज्यादा मदद होती है। हालांकि, अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। लिहाजा भारतीय मैनेजमेंट को इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है कि वर्ल्ड कप से पहले मैच प्रैक्टिस भारत में मिल रही है या ऑस्ट्रेलिया में।

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