रामायण अब भी लोकप्रिय है, लेकिन आज बहुत कम लोग उसका संस्कृत संस्करण पढ़ते हैं। करीब 1,000 साल पहले तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, बंगाली, असमिया और अवधी में रचे गए क्षेत्रीय संस्करण भी शायद ही कोई पढ़ता है। लोग आमतौर पर बोलचाल के लोक संस्करणों से ही परिचित हैं। इन संस्करणों को रामकथा कहा जाता है और उनका अक्सर मौखिक रूप से प्रसार होता है।
वाल्मीकि की पारंपरिक कथानुसार जब राम को पता चला कि वे जिस सुनहरे हिरण का पीछा कर रहे थे, वह वास्तव में रूप बदलने वाला केवल एक राक्षस था तो वे अपनी कुटिया में लौट आए। लेकिन सीता वहां नहीं थीं। राम ने उन्हें कुटिया के आस-पास तलाश किया और बाद में उन्हें घातक रूप से ज़ख़्मी गिद्ध जटायु मिला। जटायु ने ही उन्हें सीता के अपहरण के बारे में बताया। लेकिन ओडिया कथा की मानें तो राम को अन्य पक्षियों ने सीता के अपहरण के बारे में बताया था।
उपेंद्र भांजा की बैदेहिसा बिलासा और अनंग नरेंद्र की रामलीला के अनुसार एक मुर्गे ने राम को विलाप करते हुए देखा। जब उसे पता चला कि राम कौन हैं, तब उसने राम को बताया कि राक्षस राजा रावण उनकी पत्नी का अपहरण कर उन्हें अपने पुष्पक विमान में बैठाकर दक्षिण की ओर ले गया है। इस सूचना से प्रसन्न होकर राम ने मुर्गे को सोने का मुकुट पेश किया। लेकिन मुर्गे ने कहा कि लोग उसके मांस के लिए पहले ही उसके पीछे पड़े रहते हैं। वह नहीं चाहता कि मुकुट पहनने के बाद सोने के लिए लालची लोग भी उसका पीछा करने लगें। इसलिए उसने राम से ऐसा मुकुट देने का अनुरोध किया जो उसकी त्वचा के साथ ही मिश्रित हो जाए। माना जाता है कि तब से ही मुर्गों के सिर पर मुकुट रूपी कलगी पाई जाती है।
बलराम दास की 'दांडी रामायण' के अनुसार मुर्गे को विश्वास नहीं था कि राम में वरदान देने की क्षमता होगी। इसलिए, उसने व्यंग्यात्मक अंदाज़ में ऐसे ही कह दिया, ‘मुझे एक मुकुट ही दे दो!’ राम पहाड़ों से पहले ही इस वजह से नाराज़ थे कि उनके पास सीता के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए राम ने उन्हें श्राप दिया कि उनकी चोटियों पर पेड़ों का लगा मुकुट मुरझाकर मुर्गे के सिर पर मुकुट रूप ले लेगा। और ठीक ऐसा ही हुआ! अब मुर्गे को इस बात का पछतावा हुआ कि उसने राम से अमरत्व क्यों नहीं मांगा। वह राम के पीछे दौड़ा, लेकिन तब तक राम सीता की तलाश में दक्षिण की ओर निकल चुके थे।
एक अन्य ओडिया कहानी में सीता के अपहरण के बारे में एक सारस राम को जानकारी देता है। उसने बताया कि रोती हुई सीता के आंसू उस पर गिरने से उसके पंख सफ़ेद रंग के हो गए थे। राम ने नर सारस को वरदान दिया कि वर्षा-ऋतु के चार महीनों के दौरान मादा सारस ही उसका पोषण करेगी; उसे कोई काम नहीं करना पड़ेगा। लेकिन नर सारस को लगा कि उसकी पत्नी का बचा हुआ खाना खाने के कारण हर कोई उसका मज़ाक उड़ाएगा। तब राम ने उसे आश्वस्त किया कि जैसे सीता राम के समान हैं, वैसे ही हर पत्नी अपने पति के समान है। इसलिए अपनी पत्नी का बचा हुआ खाना खाने में शर्मिंदा होने की कोई वजह नहीं है। एक परंपरागत कथा में इसे एक बहुत ही आधुनिक विचार माना जा सकता है।
ये लोक कथाएं अक्सर स्थानीय नाटकघरों में प्रदर्शित की जाती हैं। स्थानीय लोगों के लिए वे उतनी ही महत्वपूर्ण और मान्य हैं, जितनी परंपरागत कहानियां हैं। वे सभी रामायण से जुड़ी एक विशाल परंपरा का भाग है, जिसके कारण लोगों को राम अपने निकट प्रतीत हुए और पूरे भारत से जुड़ गए।
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