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मध्यप्रदेश की 6 हजार से अधिक अवैध कॉलोनियां वैध होंगी। सरकार ने उनके नियमितीकरण के लिए नियमों को अंतिम रूप दे दिया है

 

मध्यप्रदेश की 6 हजार से अधिक अवैध कॉलोनियां वैध होंगी। सरकार ने उनके नियमितीकरण के लिए नियमों को अंतिम रूप दे दिया है। नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह ने कहा कि नियमों को लेकर जल्द ही प्रकाशन किया जाएगा। नियमितीकरण के बाद इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों को बिल्डिंग निर्माण की परमिशन मिलने के साथ ही बैंक लोन भी मिल सकेगा।

प्रदेश में करीब 6,876 अवैध कॉलोनियां हैं। ग्वालियर, जबलपुर, भोपाल और इंदौर में ऐसी कॉलोनियां सबसे ज्यादा हैं। नियमितीकरण का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि लोगों के अवैध मकान प्रक्रिया के तहत वैध हो जाने से उन्हें बैंक लोन की पात्रता मिल जाएगी। कॉलोनी में नगरीय निकाय के जरिए सड़क, बिजली, पानी की सुविधा मिलने लगेगी। यह भी तय किया है, जिन मकानों में नक्शे से अधिक निर्माण किया है, उसमें अधिक निर्माण की कंपाउंडिंग यानी समझौता शुल्क लेकर सेटल किया जाएगा। इससे अधिक निर्माण को तोड़ा जाएगा।

नक्शे स्वीकृत होंगे, बैंक से लोन मिल सकेगा

अवैध कॉलानियों को नियमित करने का संशोधित कानून लागू होने के बाद निर्मित मकानों के नक्शे स्वीकृत होंगे। साथ ही, लोग निर्माण के लिए बैंक से लोन भी ले सकेंगे। इन कॉलोनियों में कई प्लॉट अभी भी खाली पड़े हैं, क्योंकि नक्शे स्वीकृत नहीं होने के कारण बैंक से लोन नहीं मिल पाया था।

28 फरवरी तक आवेदन पर मिलेगी 20% की छूट

मंत्री सिंह ने कहा कि जिन लोगों ने परमिशन के बिना या दी गई परमिशन के विपरित अधिक निर्माण कर लिया है, वे 28 फरवरी 2022 तक आवेदन करें और 20% छूट का फायदा उठाएं। सरकार ने 10 अगस्त 2021 को कॉलोनियों के नियमितीकरण के संबंध में नगर पालिका अधिनियम में आवश्यक संशोधन किया गया था। इसमें कॉलोनियों के नियमितीकरण के वैधानिक प्रावधान सम्मिलित किए गए। साथ ही अनुज्ञा के बिना अथवा अनुज्ञा के प्रतिकूल भवन बनाए जाने पर कम्पाउंडिंग (प्रशमन) की सीमा को 10 से बढ़ाकर 30 प्रतिशत किया गया है।

कम्पाउंडिंग के 4264 केस मंजूर

मंत्री सिंह ने बताया, नगरीय निकायों में 31 अगस्त से 27 दिसंबर तक कम्पाउंडिंग के 5320 केस प्राप्त हुए हैं। इनमें से 4264 प्रकरण मंजूर किए जा चुके हैं और निकायों को 54 करोड़ 45 लाख रुपए कम्पाउंडिंग शुल्क मिला है। इंदौर नगर निगम ने सबसे ज्यादा 1975 केस मंजूर किए। इससे निगम को 41 करोड़ 89 लाख रुपए मिले हैं।

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